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आकाश अगम 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक #मिट्टी से बना चूल्हा #मिट्टी से जुड़ी कविता #कोई और है #लकड़ी से जुड़ी कविता #आत्महत्या #mitti kaa choolha #ममतामयी माँ #आकाश अगम #Akash Agam #koi aur bhi hai 46498 0 Hindi :: हिंदी

मैं
मिट्टी से बना चूल्हा
खड़ा निस्तब्ध , कोना मिल गया घर में
यहीं पर कर रहा अपनी गुज़र
मैं धूल माटी के कणों से हूँ बना
किसी ममतामयी माँ ने 
                                मुझे हँस कर बनाया है अधिकतर
मैंने प्यार पाया है
                        वही बस आख़िरी पल था
उसके बाद नित मैं तप रहा हूँ
   सुबह की ठंडी ठंडी हवा में भी 
                                 जलायी आग ही जाती उदर में
तपता हूँ दोपहर में
                          दिवाकर तेज में
शाम को फिर आग मेरे उदर में जाती जलायी
मैं रोज़ जलता हूँ मग़र जीवित खड़ा हूँ
हूँ बहुत लाचार 
                      जा भी नहीं सकता कहीं मैं
इससे अधिक मेरे लिए क्या दुःख होगा ?
कि मेरी गोद में पतवार , भूसा त्यागते हैं प्राण
                               जल कर राख में जाते बदल
उनके लिए मैं काल बन कर जी रहा हूँ
मेरी वज़ह से पालते हैं पेट अपना सब
   मुझ पर पकाता है मनुज भोजन
वे लकड़ियाँ भी इस क्रिया में स्वयं को बलिदान कर देतीं
हे मनुज! 
             हम बलिदान करते स्वयं को
   इसलिए कि तेरा पेट भर जाए
तू सो सके हर रात गहरी नींद में
                                          सुख चैन से
तू उठा पाए जीवन का आनन्द
पर तू ज़रा सा दुख नहीं क्यों सहन करता
ज़रा सी आँच में क्यों त्याग देता प्राण
हम तो नहीं हैं घूम सकते
                                     क्या पता कैसी है दुनिया
पर तू सदा आज़ाद था , आज़ाद है
     तू घूम , जीवन का मज़ा ले
हे मनुज ! तू यूँ हार मत , मरना नहीं
हमारा त्याग और बलिदान करता व्यर्थ क्यों
हमें भी दर्द होता है बहुत
     पर बेबसी
कुछ कह नहीं पाते
निवेदन सिर्फ़ ये स्वीकार कर तू
तनिक दिल खोल जी ले
बनाने में तेरा जीवन 
     कोई और भी करता है मेहनत , त्याग , तपस्या
हक़ क्या है कि सबका दिल दुखाता है
न ऐसे हार , न मर ऐसे
थोड़ा और जी ले 
बस यही है चाहता कहना
मिट्टी से बना चूल्हा।

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