Santosh kumar koli ' अकेला' 02 Sep 2023 कविताएँ अन्य सड़क 3811 0 Hindi :: हिंदी
ऊबड़-खाबड़ या समतल, चमचमाती चाहे रज ओढ़ी। मिट्टी, गिट्टी की बनी, चाहे सीमेंट रोड़ी। चले गंत्रिका मोटर गाड़ी, चाहे सीर की जोड़ी। चले रंक, भिखारी, चाहे राजा, किरोड़ी। हिलती है न डुलती है, पर यहां से वहां जाती है। खुद वहीं की वहीं, सबको गंतव्य पहुंचाती है। कई आते कई जाते, अपनत्व नहीं रख पाती है। उसके लिए सब समान, एकता पाठ पढ़ाती है। उड़ती है धूल, पर सब आना चाहते सड़क पर। सब मरते हैं इसकी, गिरां तड़क- भड़क पर। जो रहते वो सहते, कुछ सड़क चाह की हड़क पर। सारी अर्थव्यवस्था जिंदी, सड़क की धड़क पर।