Ratan kirtaniya 08 May 2023 कविताएँ समाजिक सुबह का नज़ारा का बात ही कुछ अलग है उसी विषय में लेख है। 6333 0 Hindi :: हिंदी
लगा के तन मन कर रही कीर्तन - टहनी - टहनी पे नाच कर ; जग - जीवन में विहंगिनी महान , राग - अनुराग में लिप्त , भागी तिमिर - चमक उठी नील गगन - पुलकित हैं सब का मन , जलद को चीरकर कभी ; जग को उज्ज्वल किया रवि , उज्ज्वल हुई सब की जीवन - अलौकिक नील गगन ; मृदु - मृदु बहती पवन ; लगा के मन प्राण - हे विहंगिनी ! तेरे कोमल हृदय में - कौन लिखा गीत ? किसने बंधा संगीत ? गा रही हैं ऐसी गान ; सुन के धन्य हुआ जीवन । जगती हे दिनकर ! मेरे कलुष उर तपाकर ; अकलुष कर , रसूल तू बन - संसृति को तपा - अरुप - स्वरुप बन । पत्र लाया पूरब दिशा में - कोई जाग गया ; कोई हैं तंद्रिक नशा में , हो गया भोर - और मत सो काम चोर बहा में अमृत घोला है - अलौकिक दृश्य - छ : ऋतु में पहली किरण - भाँति -भाँति खेला हैं , विहंगिनी राग - बेजान में आ गई जान । हवा में पुष्प गंद - दसों दिशाओं में बह रही - महाकवियों के छंद ; जीव - निर्जीव उस की पाश में , सोना बन के चमक रही तुहिन - सुन्दर सुबह के घास में । सुबह में जाग रहे जंगली हाथी - जाग रहे उसके सारे साथी ; जंगली मुर्ग - मुर्गी और तीतर - सब जाग रहे जो हैं वन के भीतर , मकड़ी करती अपने कर्म की श्रीगणेश - बिछा रही अपनी जाल - आहार श्रृंखला का चक्रव्यूह होता - सुन्दर सुबह से श्रीगणेश होता - सब श्रृंखला में धुन हैं , सुबह का का गुण - अवगुण है । जलवान में खिला सरोज ; सुन्दर सुबह की कीर्तन - करते भौंरा उस में रोज , रवि के लिए - विहंगिनी पंक्ति बन गई माला - देख के पहली उज्ज्वल , लहरों की लपटों में स्वर्ण चमके ; अब मत सो जाग के देखों - स्वर्ग से भी सुन्दर लगता - सुन्दर सुबह में वसुन्धरा ; सुन्दर सुबह यही कविता हमारा । कवि रतन किर्तनिया छत्तीसगढ़ जिला :- कांकेर