Santosh kumar koli ' अकेला' 24 Aug 2023 कविताएँ समाजिक संयोग 17525 0 Hindi :: हिंदी
बनता योग, कुयोग, वक़्त का। बदलते तख्त़नसीन, तख्त़ का। कुयोग से संवलित, मिलता गर्द में। सुयोग का संवारा, चमकता इतिहास फ़र्द में। कइयों का जीवन दबा, अधन्नों में। कईयों का इतिहास मलकता, पन्नों में। अगर बन जाती कुयोग, मूर्च्छा लक्ष्मण की। विपरीत गति होती, राम, रावण की। अगर कर्ण रथ चक्र को, नहीं निगलती वसुधा। महाभारत का इतिहास, होता जुदा। खानवा युद्ध में, भारत की तक़दीर। बिन मसि इतिहास, लिख गया इक तीर। योग -कुयोग तक का, नहीं पता। कइयों की लिखी मिटी, कइयों की लिखी कथा।