Santosh kumar koli ' अकेला' 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक शेर और सवा शेर 99825 0 Hindi :: हिंदी
शेर को भी, मिलता है सवा शेर। ख़लक़ नहीं खाली, शूरवीरों से। पीरों का पीर, बड़ा पचपीरों से। फ़क़ीरों की शफ़क़, फीकी नहीं अमीरों से। ग्रहों का भी गर्व गल गया, जब जकड़े जंजीरों से। धरा भी धरी गई, एक पैर का फेर। शेर को भी, मिलता है सवा शेर। ट्रस्ट त्रस्त, त्राहि-त्राहि त्राता,कंस अत्याचारों से। दुर्जन रज़ में रल गया, कृष्ण चमत्कारों से। कुरुक्षेत्र ने हस्ताक्षर कर दिए, लाशों के अंबारों से। कलाकार की कला निकल गई, जरा व्याध के वारों से। बंदर अंदर ले लिया, अभंज अंध अंधेर। शेर को भी, मिलता है सवा शेर। सबकी अपनी -अपनी धार, साथ मार की मार का। एक से एक नगद मिलते, काम नहीं उधार का। सिल से जब सिल भिड़ती, जंम होता अंगार का। कितने आए कितने गए, चरख़ है दिन चार का। शम से जीयो, आसमां के न थूनी न मुंडेर। शेर को भी, मिलता है सवा शेर। मिलता है सवा शेर।