Santosh kumar koli ' अकेला' 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक पोल 87643 0 Hindi :: हिंदी
ये, दुनिया ढोल की पोल। सुंदर महल, षड़यंत्र अखाड़े। जितने पोले, उतने बजते नगाड़े। सीधे दिखने वाले, ज़्यादा करते कबाड़े। जितने दिखते आबाद, उतने बरबाद रजवाड़े। मुखौटे पर मुखौटा, खोल पर खोल। ये, दुनिया ढोल की पोल। चिकनी चमक के, होते नक़ली। चाकचक व्यवस्था, कहां असली? शिष्टता का मुखौटा, होता उतना जंगली। जो जितनी करता श्लाघा, उतनी करता चुग़ली। जितना खुश ऊपर से, अंदर दुख बिन तोल। ये, दुनिया ढोल की पोल। ऊंची दुकान, फीके पकवान। ऊंचे -ऊंचे भवन, घर नहीं, होते मकान। परदे पर चमक- दमक, परदे पीछे स्याह सच परवान। भोला पाड़ा दो बार चौखे, बैठ चोल मचान। सारी व्यवस्था ढोंग, सब मखौल की टोल। ये, दुनिया ढोल की पोल। ये दुनिया ढोल की पोल।