जीवन की इस आपाधापी में बिखरती जा रही श्वांसो को समेटने की कश्मकश में भरभराते कंठ से गुनगुनाता एक लड़का, जिसे लगता है कि जिस दिन पूरी तरह से कवि हो जाएगा, मर जाएगा वो और जी उठेगी उसकी मनुष्यता!
तुम्हारा दे न पाया साथ खुल कर
चला हर बार मैं रस्ता बदल कर
मग़र मुझको लगी छोटी सी ठोकर
कहा तुमने, "मेरे यारा सम्भल कर"
मुझे शर्मिंदगी read more >>