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Santosh kumar koli ' अकेला'

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My Articles

पल्लू से मां, पसीने को पोंछती। गर्म भाप पल्लू से, जख़मी अक्षि को सेंकती। मां पल्लू से, मुंह करती साफ़। गीला कर सिर पर रखती, जब बढ़ जाता त read more >>
सच्ची है, नहीं तकिया- कलाम। गुलामी, तुझे सलाम। कोई धर्म का, कोई कर्म का, कोई शर्म का गुलाम है। कोई आदत का, कोई मत का, कोई हरम का गुलाम है। क read more >>
कल, कल हो क्यों नहीं जाता? मैं वर्तमान में, रह क्यों नहीं पाता? अनाहूत, ज्यों नटखट बच्चे। दबे पांव, ज्यों देकर गच्चे। सूरजमुखी, ज्यों सू read more >>
आपसे दूर, चाहे शरीक हूं। मैं जैसा भी हूं, ठीक हूं। छोटा- बड़ा, अच्छा- बुरा जैसा भी हूं। पर मैं, मैं हूं, चाहे कैसा भी हूं। मेरे जैसा, दूसरा read more >>
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