चक्कर है साहब, पड़ ही जाता है।
राई का बन जाता पहाड़, गढ़ी बन जाता है गढ़।
पाठा का नाटा बन जाता, पहाड़ का बने कंकड़।
मकड़ी फंसती मकड़ -जाल, read more >>
कांच के कंगूरे, कांच की दीवार।
रहने वाले कांच के, कौन करे पत्थर से वार?
इस दुनिया में कांच के, चिरक ढांस हैं घर।
रहने वालों में, अजीब -सा स read more >>
पर्वत से नदी निकलती, लेकर नई उमंग।
कैसे, कौन रोकता है, मिल जाऊं सिंधु के संग।
झर- झर, झर- झर झरने बहते, उसको दे देते आधार।
एक-एक से मिल बन जा read more >>