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Santosh kumar koli ' अकेला'

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कई- कई का, है बेशर्मी में सार। कर बेहयाई, समझे चतुराई, बनते डेढ़ होशियार। उसकी तो है उतरी हुई, औरों की झट ले उतार। एक नकटा, सौ पर भारी read more >>
एक चिड़ी, ले तिनका उड़ी, जमा नीम की डाली। दूजा लेने, दूजी बार उड़ी, तानापाई, मन घर खुशहाली। फर- फर उड़ती, देखी आकर, तिनके तृण तृण, डाल खाली read more >>
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