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Santosh kumar koli ' अकेला'

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My Articles

हम, स्कूली शहज़ादे। काज चबी पैवंदी कमीज़, कुछ हंसकर कुछ रोकर। तह कर सिरहाने रखते, नदी खार में धोकर। चुग़ली करते अंगूठे, जूतों से बाहर झ read more >>
यह ज़िंदगी, एक क्रिकेट है। आदमी एक खिलाड़ी है। कितना ही अच्छा खेलो, हारता जो क़िस्मत आड़ी है। जीवन पिच् पर चलती, जाती समय की गाड़ी है। read more >>
यौवन युक्त विभावरी, श्रृंगार करे रजनी रानी। जूड़ा खोले, केश सुखाए, छिड़क गया अमृतपानी। अल्हड़ बूंद नादान- सी, धरती पहुंच इतराती। चमचम read more >>
फंसाने को, हर जगह है दाना -पानी। यह दुनिया, बड़ी चूहेदानी। हर जगह, बिखरा कपट- कण। पल-पल, क्षण- क्षण। सेज हो, चाहे रण। दिखती बटेर, निकलता फण read more >>
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