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बलात्कार एक अपराध

Pinky Kumar 30 Mar 2023 आलेख समाजिक 6733 0 Hindi :: हिंदी

( अतिआवश्क बात में अपने बारे में बतादू मुझे प्यार और महोबत और इन दिखावटी दुनिया के बारे में नहीं लिखना आता में हमेशा सच कि दुनिया में यकीन रखने वाली लड़की हू और जो सच है। उन्ही पर में लिखती हूँ क्योंकि सच कभी नहीं बदलता है। पर झुठ पग -पग बदलता सामाजिक मुद्दे यह ऐसे मुद्दे है। जिसके बारे में हम और आप बात तो काना चाहते है। पर हम नहीं करते है। और में सामाजिक और राजनेतिक मुद्दे हैं।  लिखुगी शायद आपको पंसद आये में मानती हुँ इस दिखावटी दुनिया में लोग प्यार मोहब्ब्त से आगे कोई सोच नहीं सकते पर ध्यान दे प्यार और जिसम कि नुमाइश ;से आगे भी दुनिया और समस्या है। जिसे हम कही ना कही भुल गये है। हमें इन सामाजिक मुद्दो पर बात और लिखना चाहिये यह कलम लोगों कि भलाई के लिये उठनी चाहियें ना कि अपनी भलाई के लिये नहीं  बलात्कार जैसे अपराध पर बात करूगी) =) बलात्कार यह विशेष मुदा है। जो कई सालो से बना रहा है। और हर सरकार के कार्यकाल में बना रहा है। और आज भी बना हुआ है। बलात्कार होते लोग आवाज उठाते और सजा भी मिलती और सजा भी कैसी दोषी जो जिये हर साल और लड़की मरे हर पल  और हम जैसे लोग अफसोस करके रह जाते है आखिर ऐसा क्यों आखिर क्यों उस दोषी को जिंदा करार देदिया जाता है। बलात्कार कोई आम मुदा नहीं है। पर उसे आम मुदा सरकार और कानून बनाता है। आज समय कि बात ही क्या जब सरकार और मिडिया ने जनता को धर्म के नाम पर लड़वा रहीं है। अब तो यह मुदा हम भुल ही गये है मन्दिर औ मजिस्द से आगे बाते होती नहीं है। और इन मुद्दो पर ध्यान जाता नहीं है। क्यों नहीं जाता क्योंकि हमारी बेटी के साथ थोड़ी ना हुआ है। हमारी बेटी साथ होने का इंतजार कर रहें है। ना हम लोग हम तो बस बात बन्नाने के लिये बने है। लड़की सही नहीं थी तभी तो हुआ ऐसा वरना हमारी भी बेटी है। मजाल किसी ने हाथ लगाया हो क्यों चाचा किसका इंतजार है। हाथ लगाने वाले क्या अगर बलात्कार पर बात भी होती है तो बलात्कारियों का डेटा निकाला जाता और बात डेटा पर ही खत्म हो जाती है। भारत देश में हर दिन हर पल हर मिटर कई महिलाये, लड़कीया, छोटी बेची, बलात्कार का शिकार होती है। जिनमेसे आधे कैस बदनामि के डर से छुपा लिये जाते है। और आधों को मार दिये जाते है। अब निकालो डाटा कैसे निकालेगे और कितना निकालोगे बदनामि बहुत बुरी बात है। बात बना बहुत आसान है। जब किसी लड़की के साथ अगर कुछ गलत होता भी तो हम दिखावे तोर पर हम उसके साथ है। पिछो हम ही उसकी बुराई कर रहे होते है। यह दोगला पन क्यों क्यों ना उसे अपनी बेटी समझकर उसका साथ दे उसका होसला बढ़ाये क्यों ना इस लड़ाई में हम भी उसके बराबर में उसका साथ दे पर नहीं बदनामि होती है। लोग क्या कहेंगे लोग क्या सोचेगे अगर बेटी कि इतनी परवाह है। तो उसे घर में शोपिस कि तरह सजा कर मत रखो उसे नाजुक होने कि शिक्षा मत दो उसे यह शिक्षा मत दो कि तुम्हारा काम तो सिर्फ़ घर सम्भालना और बच्चे पेदा करना है। आदमीयो के भोग का साधन बनो शुरुवात तो हमने घर से ही करदी है। आखिर लड़कियों कि परवरिश क्यों लड़को से अलग होती है। क्यों उनके दिमाग में बेठा दिया जाता है। कि तुम सिर्फ मर्दों के लिये बनी हो अपनी लड़कियों को फौलाद बनाओं और ऐसा बनाओं मजाल कोई हाथ लगाकर तो दिखा हाथ ना तोड़ दू जो जिम्मेदारी तुम लोग लड़कों को देते है। वही जिम्मेदारीया लड़कियो को भी देना सिखो उसे बेचारी कह कर यह मत बोलो कि बेचारी नही रही है। बेचारी क्या क्यों लड़किया कमा नहीं सकती क्यों किसी ने मना किया है कि लड़किया नहीं कमा सकती और एक बात और भारत कि बात करे तो इस देश में या र्में कहुतो जितनी जिम्मेदारी और जितना काम इस समय महिलाये कर रही है।और निखटु आदमियो पाल रही है। वो है महिलाये है। आदमियों का क्या है। पिके घर आजाते है। जितना तनाव महिलाये झेल रहीं उसका आधा भी पुरुष झेलेतो मर जायेगे सारे के सारे और वो महिलाओं कि तनाव कि बात करे तो हर समय तनाव झेलती है। शोक्षित होती रहती है। चाहे वो तनाव शारिक को, चाहे वो घरेलू हो, चाहे वो तनाव सामाजिक हो आदि हर पल तनाव झेलती है। और देश के कानून और सरकार का कहना ही क्या भाई साहब दोषियों को रिहाई और निदोषियो को जेल और कोई खिलाफ बोलकर तो देखे उससे मारा जाता है। जब तक ऐसे बलात्कारियो को फांसी नहीं दि जायेगी तब तक ऐसे अपराध होते रहेगें ऐसे लोगों को कड़ी से कड़ी सजा होनी चाहिये है। और इतना ही नहीं यहा पर दोषियो को भगवान मानकर पुजा जाता है। उनकी बात मानी जाती है। ताकी और ज्यादा बलात्कार हो सके अब बात करे टिवी चैनलो कि तो हा मे मानती हुँ छोटे कपड़े पहननेसे अपराध बढ़ते है। क्यों बताती हुं अकसर जो लोग छोटे कपड़े पहनते उनके साथ गलत होता है या नहीं मुझे नहीं पता पर जो लड़कियां कभी भी घर से भाहर नहीं निकली नही किभी उसने छोटे कपड़े नहीं पहने उन लड़कियों के साथ जरूर गलत होता है। क्यों कि उनकी रखवाली करने वाला कोई नहीं है। पर छोटे कपड़े पहने वाले लड़कियों के साथ पुरा समाज, कानून, और सरकार जरूर होते है। यह कैसा भेद भाव है। भाई समझो बात को रानी लक्ष्मीबाई ,प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ,प्रथम महिला राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल, प्रथम महिला आईपीएस ऑफिसर किरण बेदी, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण,राष्ट्रपति द्रोपति मुर्मू, मीराबाई चानू ,सानिया नेहवाल, सावित्रीबाई फुले,अहिल्याबाई, कल्पना चावला, ना जाने ऐसी तममा महिलाये हमारे और आपमे अभी भी मौजूद है। हम इनसे अलग नहीं है। यह भी महिलाये है। जिन्होंने इतिहास रच दिया है हम इनसे अलग नहीं है। अपनी सोच को टीवी चैनलो और दिखावटी दुनिया और बनावटी दुनिया से बाहर निकालो तभी हम इन महिलाओं जैसा सोच सकते और कुछे बड़ा कर सकते है हम महिलाओं ने अपने आप को एक सोच के दायरो में बाध लिया है। अपने आप को इस सोच से बाहर निकालो कि हम घर सम्भाले और बच्चे पेदा करने या मर्दों का भोग का साधन है। यही सोच हमें आगे नहीं पढ़ने देती है।  मेरे कहने का मतलब यह बिल्कुल भी नहीं है। कि अपना घर बाह छोड़ दो बल्की अपनी सारी जिम्मेदारीयो निभाते हुवे आगे बढे अपने सपनो को पुरा करे और गलत का विरोध करे और बन्द करे अपने जिस्म कि नुमाईश करना

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