DINESH KUMAR SARSHIHA 08 Jun 2023 आलेख समाजिक #मोक्ष,#moksh,#बंधन,#bandhan 8643 0 Hindi :: हिंदी
पराधीनता का परिणाम दुःखद ही होता है।चाहे पराधीनता भौगोलिक हो,सांसारिक हो या फिर आध्यात्मिक।जीवात्मा की प्रकृति बंधन की नहीं होती है।बंधन चाहे सुख के हो या फिर दुःख के,बंधन तो बंधन ही होता है।इनसे मुक्ति ही मनुष्य जीवन का एकमात्र और सर्वोपरि लक्ष्य है।बंधन या पराधीनता से बढ़कर कोई दुःख नहीं और मोक्ष से बढ़कर कोई सुख नहीं।सब कुछ मिल जाने के बाद भी यदि हम बंधन में है,तो वह बंधन या परतंत्रता दुःख और दीनता का कारण बनती है।अगर हम भक्ति और भगवान अनुराग के बंधन को छोड़ दे तो सभी बंधन दु:खदायी ही होते हैं।ईश्वर भक्ति का बंधन ही हमें वास्तविक आंनद देती है।इसलिए आत्मा सदैव मुक्ति के लिए लालायित रहती है।जग में सारे दुःखों का कारण बंधन ही है और सुखों का आधार स्वतंत्रता है।जेल की कोठरियों को चाहे स्वर्णमंडित कर दिया जाए,हथकड़ियां चाहे हीरे की हो,बंधन तो आखिर बंधन ही है।कुछ ऐसा ही अनुभव जीवात्मा को भी तब होता है,जब वह सांसारिक आकर्षणों की मोह माया में गिरकर कर्मबन्धनों का कारागृह स्वयं के लिए निर्मित कर लेती है।इसलिए भावबंधनों से मुक्ति को जीवात्मा के लिए परम पुरुषार्थ में गिना गया है।।
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