SHAHWAJ KHAN 10 Jun 2023 आलेख समाजिक दशक 90 का , पुराना दौर, बचपन की यादें, 90 के दशक की कुछ यादें 10310 1 5 Hindi :: हिंदी
बात है 90 के दशक की कुछ बाते कुछ यादें जो आपके सामने लिखने जा रहा हूँ जो सच्ची भी हैं और अच्छी भी हैं|........................ बात है उन दिनों की जब हमारी उम्र 5 साल की थी और दौर था 90 के दशक का | पंछियों की चेह्चहाहट के साथ सुबह का खूबशूरत नजारा मन को खुशी से भर देता था | सुबह सुबह स्कूल जाने की फिक्र और स्कूल जाकर दोस्तों से मिलने की ख़ुशी दिल को आनंदित कर देती थी | उस दौर के ज्यादातर लोग कच्चे मकानों में रहा करते थे घर कच्चे थे लेकिन लोगों के ईमान बहुत पक्के थे लोगों के दिलों में नफरतें नहीं थी आपसी मन मुटाव बहुत कम था | आज की तरह उस वक़्त में डर और खौफ का माहौल नहीं था | न तो मोबाईल फ़ोन थे और न ही ज्यादा मोटर गाड़ियाँ थी फिर भी लोग वक़्त के पाबंद थे | गाँव में बिजली नहीं होती थी पानी की उत्तम व्यवस्था नहीं थी लोग दूर दूर जाकर तालाबों से कुओं से पानी लाया करते थे , बिजली भी कुछ ही घरों में थी | हमें याद है हमारे पडोश के एक घर में एक टी बी था जो छत पर लगे एंटीना से चला करता था उस समय सिर्फ दो ही चैनल चला करते थे DD1 और DD2 जिस में सप्ताह में सिर्फ दो बार ही फिल्मो का प्रसारण किया जाता था और आस पास के सभी लोग उस दिन का इन्तजार करते थे और इकट्ठा होकर फिल्म देखा करते थे | रविवार का दिन बहुत ही खास होता था क्योकि इस दिन स्कूल की छुट्टी होती थी और सुबह से टीबी पर अच्छे अच्छे प्रोग्राम आते थे जिन्हें हम बड़े ही चाव से देखते थे | कुछ धारावाहिकों के नाम जो उस वक़्त में आया करते थे ( चित्रहार, चंद्रकांता, अलिफ़ लैला, रामायण, महाभारत, और हम सब का फेबरेट इंडिया का पहला सुपर हीरो शक्तिमान ) जो दिल को आनंदित कर देते थे | गाँव के चौराहे पर बरगद का एक बड़ा सा पेड़ था जिस के नीचे सभी बुजुर्ग चौपाल लगा कर बैठते थे गपसप लगाते थे | और बिजली न आने पर घर के बाहर ही खटिया डाल कर सो जाया करते थे किसी तरह का कोई डर और खौफ नहीं था | गर्मियों की छुट्टी होने पर नानी के घर जाना और मामा जी के साथ पूरे गाँव की सैर करना और दिन भर सड़कों पर खेलना छुप कर दूसरे के खेत से आम तोडना दोस्तों के साथ तरह तरह के खेल खेलना कौन भूल सकता है | दादी नानी की कहानियों के बीच कब नींद आ जाती थी पता ही नहीं चलता था | तीज त्यौहार एक दूसरे के साथ मिलकर मनाना, शादी हो या कोई गमी एक दूसरे की मदद करने से हम पीछे नहीं हटते थे अपने बड़ों का कहना कभी टालते नहीं थे दिल में बड़ों के लिए बहुत इज्जत थी उस वक़्त के लोग हर छोटी बड़ी ख़ुशी एक परिवार की तरह मिलकर मनाते थे किसी तरह का कोई भेद भाव नहीं था | उस समय मोबाईल फोन नहीं थे लोग एक दूसरे का हाल जानने के लिए चिट्ठियां लिखा करते थे और जबाब के लये डाकिये का इन्तजार करते थे | आने जाने के लिए लोग साइकिल और घोडा गाड़ियों तांगों का इस्तेमाल करते थे और गाँव के लोग ज्यादातर बैलगाड़ी का इस्तेमाल करते थे | लोगों की दिनचर्या बहुत अच्छी थी लोग सुबह जल्दी उठते थे और समय पर सो जाया करते | शुद्ध चीजों का इस्तेमाल करते थे खाने पीने के सामानों में मिलावट कम होती थी जिसकी बजह से लोग बीमार नहीं पड़ते थे| वातावरण भी काफी हद तक शुद्ध था जिस कारण लोग स्वस्थ रहते थे | मंहगाई भी इतनी नहीं थी हमें याद है जब हमें कोई चीज चाहिये होती थी तो हमें घर से एक रुपया ही मिलता था | उस एक रूपये में भी हम मन भर के चीज खा लिया करते थे | ये उस वक़्त की बातें थी जिन्हें याद करके हमारा मन फिर से उसी वक़्त में बापस लौटने को करता है कभी तन्हाई में बैठ कर उस वक़्त को याद करता हूँ तो आँखों में आंसू आ जाते है बाकई वो वक़्त ही कुछ और था | न मोटर गाडियों का शोर था न मोबाइलों का दौर था कुछ बात थी उस वक़्त में वो वक़्त ही कुछ और था | ********* शहवाज खान*********