Pinky Kumar 04 Apr 2023 आलेख समाजिक 6075 0 Hindi :: हिंदी
इस अभियान कि शुरुवात अक्टूबर 2017 में एक हॉलिवुड बड़े निर्माता हार्वी वाइनस्टीन पर कई महिलाओं ने यौन उत्पीड़न और बलात्कार के आरोप लगाये थे मी टू अभियान खास कर उन महिलाओं के लिये जिनके साथ होने वाले हर गलत व्यवहार पर वह बोल नहीं पाती या किसी सामाजिक दबाव शर्म और बदनामी के डर से नहीं बता पाती है। मी टू अभियान एक अंतरराष्ट्रीय आंदोलन हो इसमें अलग - अलग देश कि हजारो लाखों महिलायें अपने हक के लिये लड़ रही है। या आवाज उठा रही है। हार्वी वाइनस्टीन पर जब महिलाओं ने यौन उत्पीड़न और बलात्कार के आरोप लागायें तो इस दुनिया भर में मी टू आंदोलन कि शुरूवात हुई और भारत भी इसमें पिछे नहीं है। भारत ने भी इस आंदोलन का जोर पकड़ा और महिलाओं के साथ होने वाले बलात्कार यौन उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाई इसमें हर वर्ग के लोग शामिल थे मौटे तोर पर राजनेता और अभिनेता शामिल थे। बलात्कार किसी सुन्दर महिलाओं को देख कर नहीं किया जाता यह पुरुषों कि हेवानीयत का शिकार होती महिलायें है। और पुरुष समाज इसी में ही अपनी बदनामी समझते है। में सभी पुरुषों कि बात नहीं कर रही हूँ पर हाँ कुछ सतर पर पुरुषों की यही सोच है। पहले के समय महिलाओं के साथ कुछ गलत होता तो उसे चुप करदीया जाता या उसे यही कहाँ जाता कि हमारी बदनामी होगी या शर्म कि वजह से वह नही बोल पाती थी पर आज ऐसा नहीं है। आज समय कुछ और है। महिलायें इस आंदोलन के जरीये अपने साथ होने वाले हर गलत व्यहार के खिलाफ बोल सकती है। मी टू एक बहोत अच्छा आंदोलन है। इसमें महिलायें अपने हक के लिये लड़ सकती वो भी खुल कर बिना किसी डर ,शर्म बिना किसी सामाजिक दबाव के अगर वो चाहेतो इस शब्द का सबसे पहले 2006 में किसी विदेशी सामाजिक कार्यकता द्वारा बोला गया था और बादमें इस शब्द का इस्तेमाल अमेरिकी अभिनेत्री एलिसा मिलानो द्वारा इसे पहचान मिली अक्टूबर 20017 में इतना ही नहीं इस आंदोलन को पर्सन ऑफ दे ईयर के लिये चुना जा चुका है। महिलाओं के साथ किसी भी प्रकार कि जबरदस्ती एक अपराध को बढ़ावा दे सकती है। इस लिये समय रहते हुवे ही अगर आवाज उठाई जाये तो महिलाओं के लिये सही साबित हो सकता है। और खास कर उन महिलाओं के लिये जिनको बोलने भी नहीं दिया जाता उसे डराकर धमकार उसे चुप कर दिया जाता है। अगर हम आज चुपी नहीं तोड़ेगे तो इनकी हेवानीयत बढ़ती चली जायेंगी। आज भी कुछ महिलायें ऐसी है। जिनके साथ कुछ गलत होता है तो उनका साथ ना तो इस देश कानून देता है। अपितु उस लड़की का मजाक बनाया जाता है। और कानून द्वारा ऐसे सवाल किये जाते है। जिससे वो महिला और भी डर और सहमसी जाति है। यह भी एक प्रकार कि जबरदस्ती है। जब दूसरे कि बेटी के साथ कुछ ग़लत होता है तो हम आसानी से बात बना लेते है। और उसी लड़की को गलत बता कर उसकी ही बुराई करते हमें उसका साथ देने कि बजायें उल्टा उसे ही गलत समझ बेटते है। आखिर कब बदलेगी हमारी सोच को क्या हमारी खुद कि बेटी के साथ कुछ गलत होने का इंतजार कर रहें हो आवाज उठाओं बोलों जब गलत करने वाले को ही शर्म नहीं आयी तो हम आज सच बोलने से क्यू पिछे हो रहें है। मी टू आंदोलन महिलाओं के हित में शुरू किया गया आंदोलन है। और यह कोई विशेष देश से सिमिज नहीं है। यह अनतराष्टीय आंदोलन है। अपने साथ होने वाले हर गलत व्यवहार के खिलाफ आवाज उठाओं चुपी तोड़ो
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