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नमक का मोल

Ritin Kumar 18 Jun 2023 आलेख समाजिक #रितिन_पुंडीर #इतिहास #सत्य_इतिहास_भाग1 14005 0 Hindi :: हिंदी

क्षत्रिय ठाकुर खेत सिंघ रूपावत चाडी

बात विक्रम सम्वत 1876 पूनम की रात निंबाज हवेली की है, जोधपुर रियासत के उत्तरी छोर पे एक अति बलशाली ठिकाना चाडी, रूपावत राठौड़ो का एक महत्वपूर्ण ताजीमी ठिकाना ! यँहा के स्वर्गीय ठाकर दौलत सिंघ के पुत्र ठाकुर खेत सिंह जी रूपावत, क्षत्रिय आन बान के पराक्रमी योद्धा थे, शरणागत रक्षक, वचन के पक्के व एक स्वाभिमानी राजपूत थे । एक बार वो किसी कार्य से जोधपुर गये हुवे थे,  और सांझ ढलते ढलते शहर से न निकल पाने के कारण वंही निम्बाज ठाकर सुरतान सिंह जी उदावत की हवेली में ठहर गये । उस समय जोधपुर शासक महाराजा मान सिंह जी थे। उनकी किसी बात को लेकर निम्बाज ठाकर से अन बन थी, और महाराजा साहिब येन केन निम्बाज ठाकुर साहब से प्रतिशोध लेना चाहते थे परंतु उन्हें ये भी ज्ञात था कि निम्बाज एक शक्तिशाली ठिकाना है ,और सीधी दुश्मनी या लड़ाई बाक़ी जागीरदारों में रोष पैदा कर सकता है ,क्योंकि अतीत में भी उन्हें एक ऐसी गलती का आभास था, जब उन्होंने  रूपावतों के ठिकाणे तागिर किये थे और फ़िर बाक़ी जागीरदारों के दवाब के कारण उनके ठिकाणे वापिस बहाल करने पड़े थे !   
निम्बाज ठाकुर साहब को महाराजा साहिब ने अपने दरबार में हाजिर होने के लिए कई बार फरमान भेजे थे परंतु उनके हाज़िर न होने से दरबार काफी कुपित हो गए और जब उन्हें पता चला की आज रात निंबाज ठाकुर सुरतान सिंह जी उदावत अपनी हवेली में आ रखा है तो उन्होंने तुरंत प्रभाव से उसे पकड़ कर दरबार में उपस्थित होने को कहा और न मानने पर मारने का आदेश दे दिया !
जब दरबार की सेना हवेली पहुंची तो सभी खाना खा रहे थे, सेना देख स्वाभिमानी सुरतान सिंह जी ने अपने साथ मौजूद साथियो और अतिथि ठाकुर खेत सिंह रुपावत को चले जाने को कहा , परन्तु स्वाभिमानी खेत सिंह क्षत्रिय धर्म दृढ़ रक्षक ने  रात्रि भोजन में खाये हुवे नमक का हवाला देते हुवे साथ रहने और लड़ने का प्रण कर लिया । सुरतान सिंह जी ने इस 22 वर्षिय युवा को चले जाने को कहा और परन्तु उस क्षत्रिय आन बान की ऊर्जा से ओत प्रोत राजपूत को यह बातें कँहा समझ आनी थी फिर क्या था हुआ, घनघोर युद्ध अँधेरी काली रात में शहर की गलियों में नर मुंड बिखरने लगे, सुरतान सिंह जी काम आये परन्तु फिर भी आधी रात तक जब दरबार में कोई खबर न पहुंची तो दरबार ने पता लगाने पे पाया कि चाडी स्वर्गीय ठाकर दौलत सिंघ का बेटा खेत सिंघ निंबाज ठाकुर के आदमियों के साथ सुरतान सिंह जी का साथ दे रहा है, ये सुन मान सिंह जी अति क्रुद्ध हुवे तब दरबार ने फ़तेह चंद सिंघवी की अद्यक्षता में और सेना भेजी । सुबह की भोर तक गलियों में हाहाकार मचा हुवा था, सूर्य देवता भी उस आन बान के धनी युवा के दर्शन को ललायत थे जो क्षत्रिय धर्म के नाम और नमक के लिए अपने ही भाइयों से लड़ रहा था । दरबार सुबह की पहली किरण के साथ किले की प्राचीर से यह सब देख रहे थे! अंततः दिन के पहले प्रहर तक थके हारे उस क्षत्रिय योद्धा युवा को जोधपुर की धरा ने अपनी छाती से लगा लिया और वो सदा सदा के लिए क्षत्रिय धर्म का पालन करते हुए जगत जननी धरा की गोदी में हमेशा के लिए सो गया ।
महाराजा ने दिन चढ़ते चढ़ते एक बार फिर से आदेश फरमा दिया कि इन रूपावतो से इनके ठिकाणे जब्त कर लिए जाए । इन रूपावतो ने पहले भी दरबारी राज के ख़िलाफ़ बगावत करी थी गुलाबराय को मारकर और आज फिर यही दोहराया। परन्तु तब कुछ जागीरदारों ने कहा कि इनके सभी  ठिकाणे जब्त करने से गृह क्लेश बन सकता है और इनके ठिकाने कोई गागरिये गन्ने से या बक्शीस में नहीं मिले हुंवे हे जो जब मन बन जाए तब खालसा घोसित कर दो हाँ आप अपना क्रोध सिर्फ चाडी पे दिखाओ । तब महाराजा ने चाडी ठिकाना रूपावतो से छीन कर पातावतो को बक्शीस दिया और रूपावतो और जोधपुर के बीच की खाई और गहरी कर दी ।


खाग बजाई खेतसी, कट बड हुयो बरंग!
संग लड्यो सुरतान रे, उण रूपावत ने रंग

निमबाज हवेली के आस पास खून के नाले बहने लगे, इस से शहर में एक भयानक दृश्य बन गया लोग पुरे दिन घरों से बाहर नहीं निकले । सुरतान सिंह जी व खेत सिंह जी दोनों का दाह संस्कार कागा में किया गया।।" एवं इसी कारण क्षत्रिय धर्म का पालन करते हुए नमक का मोल चुकाने वाले रुपावत कुल को क्षत्रिय दरबारी वीरता का पुरस्कार रंग की उपाधि दी गई एवं कुछ समय बाद प्रतिशोध के कारण खेत सिंह रुपावत के परिवार को सौभाना और भैंड़ (ओसियां) के ठिकाने दिए गए!

-रितिन पुंडीर ✍️

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