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सनातन धर्म में ईश्वर की संकल्पना

Jitendra Sharma 25 Jun 2023 आलेख समाजिक Kya Bhagwan Hota Hai, सनातन धर्म में ईश्वर की संकल्पना!, Does God Exist, God Kya Hai, Where is God, Sanatan Dharm me Bhagwan, Bhagwan Kahan Hai. 6600 0 Hindi :: हिंदी

क्या ईश्वर का अस्तित्व है?
सदियों से एक प्रश्न उठता रहा है, कि क्या ईश्वर होता है? क्या कोई ऐसी शक्ति सच में है जो इस चराचर जगत का निर्माण, पालन और संहार करती है? आज हम इस विषय पर विचार करेंगे।

ईश्वरवाद :- (आस्तिकता  या ईश्वर में आस्था रखना)
विश्व में सभी मत, पंथ और संप्रदाय ईश्वर के होने पर सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं। पृथ्वी एवं संपूर्ण ब्रह्मांड में जो कुछ भी घटित हुआ है या घटित हो रहा है उसका कर्ता अवश्य ही कोई है। क्योंकि कर्ता के अभाव में क्रिया का होना संभव ही नहीं है। ब्रह्मांड की रचना से लेकर पृथ्वी एवं अन्य ग्रह, उपग्रह आदि पर होने वाली अनेक घटनाएं हुई हैं या अभी भी हो रही है। इन घटनाओं का संचालन कोई कर रहा है या किसी ने यह तंत्र विकसित किया है जिससे ये घटनाएं संचालित होती रहती हैं। इस सब को संचालित करने वाला या संचालित करने वाले तंत्र को विकसित करने वाला ही ईश्वर है। उस एकमात्र ईश्वर को अलग-अलग मत व भाषा भेद के अनुसार अनेक नाम दिए गए हैं। अतः ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार करना पूरी तरह से विज्ञान सम्मत व सत्य है।


अनीश्वरवाद :- ( नास्तिकता या ईश्वर के अस्तित्व को न मानना )

अनीश्वरवाद का अर्थ है, ईश्वर को न मानना। अनीश्वरवादी विचार धारा ईश्वर के अस्तिव् का खंडन करती है । भौतिक वादी या लौकिक सत्ता पर विशेष बल देता है । ये स्वीकार करता है कि जगत नैतिक नियम से संचालित होता है, ईश्वर से नहीं । अर्थात जगत या प्रकृति ही स्वत: अपने नियमों के अनुसार संचालित होती है। इस मत के मानने वाले अनीश्वरवादी या नास्तिक कहलाते हैं। इसको मानने वाले भी विश्व में एक बड़ी संख्या में हैं। किंतु यह मत उचित नहीं जान पड़ता, अतः अधिक संख्या ईश्वर के मानने वालों की है।


अब प्रश्न उठता है कि ईश्वर एक है या एक से अधिक? या यूं कहें कि सनातन संस्कृति के अनुसार ईश्वर अद्वैत है या द्वैत?
अद्वैतमत:- 
अद्वैत मत के प्रतिपादक आदि शंकराचार्य हैं। आदि शंकराचार्य के अनुसार संसार में ब्रह्म ही सत्य है। स्वयं ब्रह्म ही एकमात्र सर्वशक्तिमान ईश्वर है। जीव और ब्रह्म को अलग नहीं किया जा सकता। अद्वैत मत के अनुसार जगत मिथ्या है। जीव को केवल अज्ञान के कारण ही ब्रह्म और जगत अलग दिखता है। जिस कारण जीव जगत को सत्य स्वीकार कर लेता है और ब्रह्म को नहीं जान पाता, जबकि ब्रह्म तो स्वयं उसके अंदर ही विराजमान है।


द्वैतमत:-
द्वैतमत या द्वैतवाद सिद्धांत के प्रवर्तक माधवाचार्य हैं। इस मत के अनुसार ब्रह्म और प्रकृति को अलग-अलग माना गया है। कुछ विद्वानों का मत है की आत्मा और परमात्मा को एक न मानकर अलग-अलग मानना द्वैतवाद है। द्वैतवाद के अनुसार सर्वशक्तिमान परमात्मा ने प्रकृति का निर्माण किया, जिसका अपना पूर्ण अस्तित्व है और प्रकृति अर्थात जगत मिथ्या न होकर नित्य है।

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