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उज्जैन यात्रा

Uma mittal 30 Mar 2023 आलेख धार्मिक उज्जैन और इंदौर यात्रा 19347 0 Hindi :: हिंदी

धार्मिक विचारों की होने के कारण मुझे ज्योतिर्लिंग के दर्शन और धार्मिक स्थलों में रुचि है उज्जैन मध्य प्रदेश में शिप्रा नदी के तट पर बसा हुआ है इसे महाकाल की नगरी के नाम से जाना जाता है |
उज्जैन में दर्शन योग्य प्रसिद्ध स्थान :-
1. श्री बड़ा गणेश मंदिर
2. श्री शिप्रा नदी
3. राजा भरतरी की गुफा
4. श्री संदीपनी मुनि आश्रम
5. श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
6. श्री मंगलनाथ मंदिर
7. श्री शनि देव मंदिर
8. श्री हरसिद्धि मंदिर
9. श्री गढ़कालिका मंदिर
10. श्री काल भैरव मंदिर
11. श्री सिद्धवट मंदिर
12. श्री रामघाट
13. राजा विक्रमादित्य महल
बेटे की पोस्टिंग आजकल अंबाला में है , हम सब उज्जैन यात्रा के लिए अंबाला से निकल पड़े मेरे पति की सीट कंफर्म नहीं हो पाई थी सो वह घर पर ही रह गए हमने अंबाला से उज्जैन के लिए रात 9:00 बजे चंडीगढ़ इंदौर एक्सप्रेस ट्रेन पकड़ ली पूरी रात हमने ट्रेन में बिताई हम लगभग 3:00 बजे अगले दिन उज्जैन पहुंच गए पहुंचकर ऐसा लगा जैसे कोई थकावट ही ना हो उज्जैन के रेलवे स्टेशन पर पैर रखते ही मन प्रसन्न हो गया कि हम तो महाकाल की नगरी उज्जैन में आ गए फिर हमने होटल में कमरा बुक किया और जल्दी-जल्दी बिना समय बर्बाद किए नहा कर तैयार हो गए तभी हमने एक ऑटोरिक्शा बुक किय| जो मात्र ₹300 में था जिसने हमें सबसे पहले राजा भरथरी की गुफा दिखाई पता चला कि राजा भरथरी राजा विक्रमादित्य के भाई थे गुफा काफी प्राचीन थी और कहा जाता है कि वहां की धूनी मात्र के दर्शन करने से जन्म जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं हमें दर्शन करके बहुत अच्छा लगा इसके बाद हमने ऑटो वाले से कहा कि हमें पता है कि उज्जैन में श्री कृष्ण भगवान जी जहां से पढ़े हैं वह महाविद्यालय भी है जिसका नाम संदीपनी मुनि आश्रम है पहले हमें वही ले जाओ कहीं यह ना छूट जाए तो हम सब वहां पहुंच गए सचमुच वह आश्रम बहुत ही सुंदर था वह बहुत बड़ा विश्वविद्यालय था वहां पर भगवान श्री कृष्ण के गुरु संदीपनी मुनि , श्री कृष्ण भगवान , बलराम भगवान ,मित्र सुदामा और उनकी सभी शिक्षाओं की तस्वीरें थी जिनके हम ने दर्शन किए वहां हरी हरी घास जो बहुत मुलायम थी हम उस पर भी चले और मन ही मन प्रसन्न हो रहे थे कि इस पर कभी कृष्ण भगवान भी चले होंगे और उसी वक्त बहुत हल्की हल्की बारिश की फुहार भी पड़ने लगी जिसने हमारा आनंद और भी दुगना कर दिया सचमुच भगवान जी ने बहुत अच्छी जगह से शिक्षा ग्रहण की थी इसके बाद हम लोग मंगलनाथ मंदिर पहुंचे यह मंदिर बहुत ही खास मंदिर है और इसका महत्व बहुत ही ज्यादा है कहा जाता है कि यहां मंगल देव का जन्म हुआ है यहां लोग दूर-दूर से मंगल दोष को दूर करने आते हैं कहा जाता है कि मंगल दोष जिनकी कुंडली में खराब होता है या फिर किसी जातक में मांगलिक दोष हो तो वह इसी मंदिर में पूजा करवा कर दोष निवारण करवा सकते हैं सुना है अमिताभ बच्चन ने भी अपने बेटे बहू का मंगल दोष निवारण यही करवाया है हमने भी वहां मंगल भगवान के दर्शन किए और हमें बहुत अच्छा लगा हमें वहां जाकर ऐसा लगा कि अगर हमारी कुंडली में भी मंगल कमजोर हुए तो मंगल भगवान हम पर भी कृपा कर देंगे थकावट की बजाय हमारा उत्साह और बढ़ता जा रहा था उसके बाद हम मां हरसिद्धि मंदिर में दर्शन के लिए चले हमने सुना कि यहां राजा विक्रमादित्य रोज माता के दर्शन के लिए आते थे और उसके बाद ही अपना दरबार लगाते थे यह 51 शक्ति पीठों में से 1 शक्ति पीठ है यहां मां शक्ति की कोहनी गिरी थी मंदिर भी सुंदर और महत्व रखता है कहते हैं कि मां हरसिद्धि भक्तों की हर कामना पूरी करती हैं और भक्तों को कभी निराश नहीं करती हमने भी दर्शन और पूजन किया और बहुत श्रद्धा के साथ सिर झुकाया वहां से थोड़ी ही दूरी पर हम एक और माता के मंदिर पहुंचे जिसका नाम गढ़कालिका मंदिर था जो बहुत ही महत्व रखता है कहते हैं यहां के दर्शन करने पर भक्तों को यश और कीर्ति मिलती है और भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है दर्शनों की इच्छा इतनी बढ़ती जा रही थी कि किसी को भूख प्यास की इच्छा नहीं थी अब हम लोग काल भैरव मंदिर पहुंचे जिसका हमें बहुत इंतजार था क्योंकि सुना था कि भैरव बाबा को एक पात्र में मदिरा का भोग लगाया जाता है और पात्र खाली हो जाता है मंदिर के बाहर ही एक मदिरा की दुकान थी हमने भी सबसे महंगे ब्रांड की बोतल खरीदी और पंडित जी को प्रसाद चढ़ाने को कहा पंडित जी ने हमारे सामने भैरव बाबा को भोग लगाया और यह क्या ! सचमुच इतना बड़ा चमत्कार और वह भी इस कलयुग में पूरा पात्र खाली हो गया अर्थात भगवान ने हमारा भोग भी स्वीकार किया | उसके लिए हमने भगवान भैरव बाबा का धन्यवाद किया वहां के लोगों ने बताया कि यहां पर तो बहुत बड़े बड़े वैज्ञानिक आए और उन्होंने कई तरीके से जांचा परखा पर वह भी सब भैरव बाबा की शक्ति को मानकर उनके आगे सिर झुका कर चले गए | वैसे हम भी हैरान रह गए थे और जय भैरव बाबा कहते हुए वापस होटल में आ गए फिर होटल वाले ने हमें चाय और स्नैक्स दिए | चाय पीकर हम फिर से तैयार हुए और जय महाकाल कहते हुए पैदल ही महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग पहुंच गए क्योंकि होटल हमने महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के पास ही बुक दिया था श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग भगवान भोलेनाथ के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है यहां के दर्शन मात्र से व्यक्ति की अकाल मृत्यु नहीं होती और भगवान शिव हर भक्त की हर इच्छा पूरी करते हैं और भक्तों को कभी निराश नहीं करते यह तो बहुत बड़ा सुंदर मंदिर है इस मंदिर के कारण ही उज्जैन को महाकाल की नगरी कहा जाता है महाकाल को उज्जैन का राजा कहा जाता है |अगर हम 5 मिनट भी लेट हो जाते तो हम आरती में शामिल नहीं हो पाते | हमने सारी आरती होते हुए देखी हमारा मन गदगद हो रहा था कि हम भगवान के दर्शन काफी समय तक कर पा रहे हैं और मन ही मन शुक्र मनाने लगे कि अच्छा हुआ कि हमने खाना नहीं खाया नहीं तो हम आरती का लुफ्त नहीं ले पाते|
यहां की भस्मारती बहुत प्रसिद्ध है परंतु हमें पता नहीं था कि 1 दिन पहले ही इसकी बुकिंग करानी होती है इस वजह से हम वह नहीं देख पाए | उस मंदिर के पुजारी ने हमें महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा सुनाई जो इस प्रकार है :- उज्जैन में बड़े-बड़े ब्राह्मण पूजा पाठ करते थे उस पूजा पाठ को देखकर एक दूषण नाम का एक असुर ब्राह्मणों की पूजा पाठ में बिंद डालता था और अत्याचार करता था क्योंकि ब्रह्मा जी से वरदान पाकर शक्तिशाली हो गया था ब्राह्मण त्राहि-त्राहि कर रहे थे तब शिवजी प्रगट हुए और अपने एक हुंकार से असुर को वही जलाकर भस्म कर दिए और वही सभी के अनुरोध पर शिवजी सदा के लिए ज्योतिर्लिंग रूप में स्थापित हो गए और उन्हें महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है तब से उज्जैन नगरी को महाकाल की नगरी कहते हैं शिव जी ने उज्जैन नगरी की रक्षा करने का वचन दिया है आरती के बाद हम लोगों ने एक होटल में खाना खाया और उसके बाद हम वापस अपने बुक किए हुए होटल में चले गए सुबह हम जल्दी उठे और नहाकर नाश्ता किया लगभग 8:00 बजे सवेरे हम रामघाट मंदिर गए कहते हैं यहां श्री राम जी आए थे और शिप्रा नदी यहीं पर बहती है कहते हैं कि शिप्रा नदी के दर्शन मात्र से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं शिप्रा नदी में कुंभ का मेला भी लगता है यहां पूजन आदि करके गौ माता को चारा खिलाना होता है जो वहां आसानी से मिल जाता है हमने भी चारा सुरभि गए और अन्य गायों को खिलाया इसके बाद हम सभी श्री बड़ा गणेश मंदिर जो महाकालेश्वर मंदिर के पास ही है गए मंदिर भी काफी सुंदर है कहते हैं यहां का दर्शन पूजन जो एक बार कर लेता है उसे यश मान-सम्मान किसी बात की कमी नहीं होती वहां के दर्शन के बाद हम सिद्ध वटवृक्ष के दर्शन को गए सिद्धवट बहुत ही पुण्य प्राप्त वृक्ष है इसके पास भी शिप्रा नदी बहती हैं भारत में 4 वृक्ष को ईश्वरीय रूप वृक्ष माना गया है इसमें से एक उज्जैन नगरी में है कहा जाता है कि इसके दर्शन से भी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं| कहा जाता है कि इस वृक्ष के नीचे माता पार्वती ने बहुत साल तपस्या की थी इसके बाद हम लोग राजा विक्रमादित्य के महल को देखने के लिए गए राजा विक्रमादित्य को कौन नहीं जानता होगा उनकी बत्तीस पुतली की कहानी बड़ी ही मशहूर है उन्हीं के नाम पर विक्रम संवत कैलेंडर बने हैं विक्रमादित्य उज्जैन के राजा थे उनके दरबार में नवरत्न थे जो सभी एक से बढ़कर एक थे जिन की मूर्ति बनी हुई है राजा का सिहासन ,नर्तकी आदि सभी देखने लायक है राजा काफी प्रतापी था इसलिए एक बार सभी देवता उसके पास आए और बोले “राजन! हम सभी में बड़ा कौन है? कृपा करके आप निर्णय कर दें ,क्योंकि यह निर्णय करने के लिए कोई भी तैयार नहीं है |” राजा ने कहा “मैं सभी का आसन बनवा देता हूं ,जिसका जो आसन हो कृपा करके उसे आप ग्रहण कर ले, जिसका सिहासन आगे होगा वह बड़ा और जिसका पीछे होगा वह छोटा होगा |”इस प्रकार सोना, चांदी ,लकड़ी ,लोहे , तांबा, पीतल आदि सिहासन बना दिए गए | सबसे अंत का सिहासन लोहे का था सबसे पीछे आसन देखकर शनिदेव को गुस्सा आ गया और समय आने पर शनि देव जी घोड़े के व्यापारी बनकर राजा विक्रमादित्य के महल में आए घोड़े के व्यापारी बनकर शनिदेव जी आए और बहुत बढ़िया घोड़ा देखकर विक्रमादित्य ने खरीद लिया और जब राजा उस घोड़े पर बैठा तो उस घोड़े ने राजा को जंगल में ले जाकर गिरा दिया |राजा अपना मानसिक संतुलन खो बैठा पर एक साहूकार को राजा पर दया आ गई वह उसको अपने घर ले आया उस दिन उस साहूकार की अच्छी कमाई हुई इसलिए वह उसे किस्मत वाला समझकर उसे अपने पास ही रख लिया एक दिन विक्रमादित्य साहूकार के घर खाना खा रहा था तो देखता है कि एक खूंटी पर एक हार टंग रहा था और खूंटी हार को निगल गई जब साहूकार को हार नहीं मिला तो उसे घर रहते विक्रमादित्य पर शक हुआ और वह विक्रमादित्य को वहां के राजा के पास पकड़ कर ले गया जब वहां केराजा को सारी बात पता चली तो राजा ने गुस्से में आकर उसके अर्थात विक्रमादित्य के हाथ पैर कटवा कर उसे चौराहे पर रख दिया उसी रास्ते से एक तेली जा रहा था उसको विक्रमादित्य पर दया आई और उसे अपने घर ले गया वहां विक्रमादित्य तेल निकालने का काम कोल्हू पर बैठ कर करता था | 1 दिन राजा मल्हार राग गा रहा था एक राजा की बेटी विक्रमादित्य की आवाज पर मोहित हो गई और उसने उससे शादी करने का निश्चय किया उसके पिता तैयार तो नहीं थे पर बेटी के प्यार में तैयार हो गए इधर राजा को अपनी भूल का एहसास हो गया था और उसने शनिदेव भगवान से माफी मांगी और वह जान गया था कि यह सभी परेशानियां शनिदेव को नाराज करने की वजह से ही आई थी जब विक्रमादित्य ने शनिदेव महाराज से अपनी भूल की माफी मांगी तो शनिदेव ने विक्रमादित्य को क्षमा कर दिया और उसके हाथ पैर ठीक हो गए अर्थात वापस लौटा दिए| राजा काफी खुश हुआ और राजकुमारी से शादी करके उज्जैन नगर लौट गया और काफी शनिदेव की कृपा से प्रतापी राजा बना और उसने अपने राज्य में ढिंढोरा पिटवाया ” शनिदेव सर्वश्रेष्ठ देवता है” | और उसने शनिदेव का एक विशाल मंदिर बनवाया और वहां पूजा करने लगा और खुशी-खुशी रहने लगे और काफी नाम कमाए |यह मंदिर उज्जैन से इंदौर जाते हुए रास्ते में पड़ता है और यहां पर नवग्रह मूर्तियां भी हैं और कहते हैं कि यहां के दर्शन मात्र से सारी इच्छाएं पूरी होती हैं जो भी दर्शक उज्जैन जाए वह इस मंदिर में भी जरूर जाएं | और हमने श्री ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग के लिए बस पकड़ी ओमकारेश्वरमंदिर पहुंचने में हमें 3 घंटे बस में लगे इसके बाद हम खुशी-खुशी ओम्कारेश्वर दर्शन केलिए लाइन में लग गए इस ज्योतिर्लिंग में नर्मदा नदी बहती हैं यह नदी ओम के आकार में है साथ ही यह उल्टा बहती हैं
अर्थात पश्चिम की ओर बहती हैं इनके दर्शन मात्र से पुण्य प्राप्त हो जाते हैं नर्मदा नदी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि नर्मदा नदी का हर पत्थर शिव रूप माना जाता है नदी में कोई भी पत्थर निकालो तो उसमें शिवजी के चिन्ह जरूर मिलते हैं जैसे किसी में जनेऊ ,किसी में नाग या शिवजी की कोई निशानी इस पत्थर से जरूर मिलती है| इस पत्थर को प्राण प्रतिष्ठित कराने की जरूरत नहीं होती है अपने आप में प्राण प्रतिष्ठित शिवलिंग माना जाता है | इन्हें नर्मदेश्वर शिवलिंग कहा जाता है | मैं भी वहां से 3 शिवलिंग अपने घर के लिए ले आई | जिधर जिधर नर्मदा बहती है ,उनके साथ हमेशा शिव जी रहते हैं | नदी इतनी पावन है कि इनके दर्शन मात्र से जन्म जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं हमने ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन किए और इसके बाद हमने ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन किए| वहां के पुजारी ने हमें बताया कि यह ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दो स्वरूप हैं एक को ममलेश्वर के नाम से जाना जाता है | यह नर्मदा के दक्षिण तट पर ओमकारेश्वर से थोड़ी दूर हटकर है |पृथक होते हुए भी दोनों की गणना एक में हीकी जाती है |लिंग के दो स्वरूप होने की कथा पुराणों में इस प्रकार दी गई है:-एक बार विंध्याचल पर्वत ने पार्थिव अर्चना के साथ भगवान शिव की 6 महीने तक कठिन उपासना की| उनकी उपासना से प्रसन्नहोकर शंकर जी वहां प्रकट हो गये उन्होंने विंध्याचल को उनके मनोवांछित वर प्रदान किया, विंध्याचल की वर प्राप्ति के अवसर पर वहां बहुत से ऋषि गण और मुनि भी पधारे ,उनकी प्रार्थना पर शिवजी ने अपने ओमकारेश्वर नामक लिंग के दो भाग किए |एक का नाम ओमकारेश्वर और दूसरे का नाम ममलेश्वर पड़ा दोनों लिंगों का स्थान और मंदिर पृथक होते हुए भी दोनों का स्वरूप एक ही माना जाता है |एक मनुष्य को इस क्षेत्र की यात्रा अवश्य ही करनी चाहिए लौकिक पारलौकिक दोनों प्रकार की उत्तम फलों
की प्राप्ति भगवान ओमकारेश्वर की कृपा से सहज ही हो जाती है अंततः उसे भगवान शिव के परम धाम की प्राप्ति भी हो जाती है दर्शन करने वालों को सभी प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं वहां के दर्शन पूजन करने के के बाद हमने इंदौर के लिए वापस बस पकड़ ली |इंदौर पहुंचकर हमने एक होटल बुक किया रेस्टोरेंट में हमने खाना खाया और उसके बाद हम खजराना टेंपल के लिए निकल पड़े| उस वक्त रात के 12:00 बज रहे थ खजराना टेंपल भी काफी प्रसिद्ध और बहुत सुंदर मंदिर है |यह गणेश जी का बहुत ही पावन मंदिर है | यहां के दर्शन करके हमें बहुत ही अच्छा लगा लगभग रात 1:00 बजे हम लोग सराफा बाजार के लिए ऑटो से निकल पड़े ,इंदौर में सराफा बाजार भी देखने लायक है , रात को ऐसा लगता है जैसे हम लोग बड़े मेले में आ गए हो दुकाने इतनी सजी थी कि बस क्या कहना ,खाने की चीजें इतनी अच्छी थी कि आज भी हम उसे याद करते हैं वहां हमने बहुत तरह तरह की चीजों का आनंद लिया लगभग 2:00 बजे हम रात को होटल में वापस आ गए |अगले दिन हम लोगों ने ट्रेन पकड़ी और हम खुशी-खुशी अपने घर आ गए हमने इस यात्रा का पूरा आनंद लिया|
उमा मित्तल , राजपुरा ,पंजाब |




















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