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PANKAJ KUMAR PANDEY

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सपने सजा रहा था मै उसका लेट कर, कि फेंका उसने पत्थर चिट्ठी लपेटकर, देखती रह गई वो पर्दे की ओट से, मेरा थोबड़ा बिगड़ गया पत्थर की चोट से। read more >>
जलती आग के सरारे हुआ करते थे, कभी तो हम भी यूँ कुँवारे हुआ करते थे। थोड़े नमकीन और करारे हुआ करते थे, कभी तो हम भी यूँ कुँवारे हुआ करते थ� read more >>
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