Samar Singh 02 Apr 2024 गीत दुःखद गर्मी का मौसम और परिंदे को पीने को पानी नहीं मिल रहा है, न बैठने को छाँव। 3843 0 Hindi :: हिंदी
मौसम की बेरुखी, दिल हुआ दुखी। ढूँढती निगाहें, मिलती नहीं राहें। प्यास ऐसी लगी, चाह ऐसी जगी। क्या बचूँगा मैं नहीं जिन्दा, मैं बेघर उड़ता परिंदा। हर जगह रेत ही रेत, खाली पड़े सब खेत। मिलती नहीं पानी की एक बूँद, जहाँ जाऊँ मैं कूद। ये गर्म लू, जीवन नर्क सी बू। प्रकृति बना है कैसे दरिंदा, मैं बेघर उड़ता परिंदा। रचनाकार-- समर सिंह " समीर G "