जब चढ़ा इश्क का परवाना,
जब खिली कलियां ही क्षेत्र में।
वह दौर था पुस्तक पढ़ने का,
उसकी बसी छवि जब ही क्षेत्र में।।
सामना भी हुई तो इस अंदाज में,
अनजान थे दोनों और नादान भी।
होती थी बातें नजरों से इस कदर की,
समझ आती थी वह भी आधी रात में।।
जब चढ़ा इश्क का परवाना,
जब खिली कलियां ही क्षेत्र में।
वह दौर था पुस्तक पढ़ने का,
उसकी बसी छवि जब ही क्षेत्र में।।
सामना भी हुई तो इस अंदाज में,
अनजान थे दोनों और नादान भी।
होती थी बातें नजरों से इस कदर की,
समझ आती थी वह भी आधी रात में।।