Mohan pathak 30 Mar 2023 आलेख समाजिक समस्या समाधान 29849 0 Hindi :: हिंदी
कोरोना के दीर्घ गामी परिणाम कोरोना के दीर्घ गामी परिणाम आने की शुरुवात होने लगी है। पहली लड़ाई आर्थिक क्षेत्र की है। इस क्षेत्र में देश के कर्मचारियों को सैनिक बनाकर रण क्षेत्र में सबसे आगे कर दिया गया है।हमारी परम्परा में जो रणनीति युद्ध के मैदान में अपनाई जाती रही है, आज एक बार फिर से वही नीति अपनाई जा रही है। लड़ने के लिए सामान्य सैनिक सबसे आगे लगाए जाते रहे हैं।स्पष्ट है सबसे अधिक नुकसान उन्हीं सैनिकों को होता है। इतिहास गवाह है जितने भी युद्ध होते रहे हैं, उन सबमें सामान्य सैनिक ही अधिक कालकवलित हुए हैं।राजा सेनानयक और अन्य विशेष दर्जा प्राप्त लोगों तक पहुंचते पहुंचते युद्ध समाप्त हो जाता है। भारत विश्व का सर्वाधिक विशाल प्रजातांत्रिक देश है। किन्तु यहां आज भी राजशाही व्याप्त है। अन्तर इतना ही है, की आज के राजा हमारे ही द्वारा चुने गए हैं।सीधी सी बात है जनता अपना प्रतिनिधि इसलिए चुनती है संकट के समय उनका साथ दे। यह इस देश का दुर्भाग्य है कि को भी राजा बन जाता है वह जानता पर अत्याचार ही करता है। चाहे वह जानता द्वारा ही चुना क्यों न हो। आर्थिक मोर्चे पर अपने सामान्य कर्मचारियों को खड़ा कर ऐसा लगता है सरकार अपनी आर्थिक नीति में असफल होती जा रही है।सरकार का यह फैसला कि कर्मचारियों का डी ए स्थगित किया जाना एक तरफा फैसला लगता है। यह देश प्राचीनकाल से ही दानवीरों का देश रहा है। यह हमारी संस्कृति है संकट के समय पर इस देश के निवासी अपना सबकुछ दान कर देते हैं।महर्षि दधीचि, राजा शिवि, बाली, दानवीर कर्ण जैसे महापुरुषों की यह धरती है। आज भी यहां दानवीरों की कमी नहीं है। किन्तु इसके लिए पहल स्वयं राजा को करनी चाहिए।राजा ही प्रजा को प्रेरणा दे सकता है। आज सरकार द्वारा डी ए स्थगित किए जाने के एक तरफा आदेश के कारण सोशल मीडिया से लेकर प्रिंट मीडिया तक में आलोचना समालोचना देखने को मिल रही हैं। यह निर्णय जल्दबाजी में लिया गया निर्णय प्रतीत होता है। यदि यही निर्णय सबसे पहले माननीयों के भत्तों के सम्बन्ध में लिया होता तत्पश्चात कर्मचारियों के लिए तो आज सरकार की चारों ओर वा वाही हो रही होती। राजकोष में वृद्धि करने के और उपायों पर भी गौर किया जा सकता है जैसे 1. माननीय विधायक, सांसद, मंत्री और समस्त प्रकार के वी आई पी लोगों के भत्तों, उनको मिल रही सरकारी सुविधाओं पर कटौती कर राजकोष का एक बहुत बड़ा हिस्सा खर्च होने से बचाया जा सकता है।माननीयों के आय के स्रोत केवल वेतन भत्ते ही नहीं हैं, उनके अपने निजी व्यवसाय हैं, जिनसे अच्छी आय प्राप्त होती रहती है। सभी माननीय वेटें के लिए नहीं बल्कि जन सेवा के लिए चुने जाते हैं। जनसेवक को पारिश्रमिक कि आशा नहीं करनी चाहिए । ऐसे माननीय जो राजकोष से सेवा के नाम पर पारिश्रमिक लेते हुए भी जनसेवक की विशेष श्रेणी में आते हैं। तो राजकीय कर्मचारियों को भी उन्हीं के समान सुविधाओं से वंचित करना किस न्यायव्यवस्था के अन्तर्गत आता है 2. प्रत्येक वस्तु से लेकर सेवा पर एक प्रतिशत अधिभार लगाकर लाखों करोड़ रु का कोष जमा हो सकता है। यही अधिभार विलासिता की वस्तुओं पर 5 से 10 प्रतिशत तक किया ज सकता है। जनधन और विद्यार्थियों के खातों को छोड़कर प्रत्येक कहते से प्रति माह एक सौ रुपए की कटौती की जा सकती है। 3. माननीयों की विदेश यात्रा जबतक अपरिहार्य न हो स्थगित ही रखी जा सकती है। 4.ए तथा बी श्रेणी के अधिकारियों का यात्रा भत्ता स्थगित किया जा सकता है।5. मंदिरों, मठों, मस्जिदों और अन्य धार्मिक स्थानों की आय का 25 प्रतिशत राजकोष में जमा कराना अनिवार्य किया जा सकता है।6.भूतपूर्व माननीयों को मिल रही सुविधाओं पर भी कटौती का विचार किया जा सकता है।अमेरिका जैसे धनसंपन्न देश में अपने भूतपूर्व माननीयों पर खर्च न्यून है तो भारत भी इसे अपना सकता है। उपूर्युक्त उपायों से कितना राजकोष जमा हो सकता है इसका आकलन थी आर्थिक विशेषज्ञ ही कर सकते हैं। किन्तु इतना विश्वास है इनसे एक बहुत बड़ा कोष इस महामारी से लड़ने के लिए जमा हो सकता है।