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होली की सितम

Samar Singh 30 Apr 2023 गीत दुःखद उनके बिछड़ने की याद चल ही रही थी कि ये होली भी आ पहुँची, वाह रे कयामत। 6144 0 Hindi :: हिंदी

फिर आई दर्द लेके होली, 
सारे गुलाल उड़ रहे। 
उनकी एक याद है कि, 
जो मलाल की जड़ रहे।। 

बेचैनियाँ रंगों की मानिंद, 
जीवन में एक फुहार की तरह पड़ रही है। 
चाहत की पिचकारी, 
कोने में पड़ी अब भी अकड़ रही है।। 

हालत क्या है न पूछो, 
मेरे हर अरमानों की होली जल रही है। 
सीने में दहकता अंगार, 
जीवन के रंगों में जहर उगल रही है।। 

चलेगी कहानी कब तक, 
गुलाल, रंग, अबीर की। 
ये कैसा गम का रंग है, 
चढ़ कर बदल दी रंगत जमीर की।। 

रंग का अपना ढंग, 
पानी में घुल के बनी तरंग, 
हर जर्रे- जर्रे की एक जंग, 
खेले बड़े उमंग में इस बार चल, 
होली के हर सितम संग- संग।। 

रचनाकार- समर सिंह " समीर G "

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