” प्रताड़िता”
मधुमक्खी और
उसकी अभिलाषा
कभी शांत नहीं होती है,
पराग कणों के लिए,
पुष्पों को बेधना
और पराग लेना,
यदि एक पुष्प सूख गया
तो दूसरा सही,
परंतु बेधने की प्रक्रिया
चलती रहती है,
अनवरत….
और
पुष्प की अवस्था
रह जाती है…
एक प्रताड़ित बहू जैसी।
@साधना सिंह
(यह कविता प्रताड़ित बहू को ध्यान रखकर लिखी गई है,
यह उन बहुओं के लिए नहीं है जिनकी वजह से सास प्रताड़ित हैं)