संदीप कुमार सिंह 25 May 2023 गीत समाजिक मेरा यह गीत समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 6420 0 Hindi :: हिंदी
उलझा है संसार यह,भौतिक सुख में लोग। नहीं सूझता और कुछ, सभी चाहते भोग।। उलझा है संसार में,समझे सब जन खेल। अपनी अपनी सोच है,होगा कभी न मेल।। उलझा है संसार में,कारण जिनमें लोभ। करूं भक्ति निर्लोभ हो,होता फिर मत छोभ।। उलझा है संसार में,माया की है साथ। इधर उधर भटके सभी,लेकर खाली हाथ।। उलझा है संसार में,मिलता नहीं विचार। अलग अलग आलाप कर,खुशी हुई दुश्वार।। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍🏼 जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा) बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....