अशोक दीप 30 Mar 2023 गीत समाजिक Holi geet, holipoem, dhula di , holi kavita 24216 0 Hindi :: हिंदी
उस दिन मेरी होली होगी जिस दिन आँसू नहीं झरेगा जिस दिन जीवन नहीं मरेगा हास्य उड़ेगा आँगन-आँगन चारों ओर ठिठोली होगी । उस दिन मेरी होली होगी । पनघट जाकर भी आशाएँ देखो प्यासी रह जाती हैं तट की बाँहों को पाकर भी हाय कश्तियाँ बह जाती हैं शिखर कलश के स्वप्न लिये ही जवां इमारत ढह जाती हैं खुद तो कह न सकी निज पीड़ा मगर निशानी कह जाती हैं जिस दिन बुर्जे नहीं गिरेंगीं शोक दिवारें नहीं करेंगीं हर दरवाजे दस्तक देती मनभावन रंगोली होगी । उस दिन मेरी होली होगी । फागुन जैसे मौसम में भी कलियाँ दर्पण देख न पाएँ मनमोहन की बाँसुरिया से भिटना चाहें भेट न पाएँ अंग-अंग नव रंग बसंती हैं फिर भी दूर अबीरों से तड़फ मरे हैं गीत होंठ पर पिंजरबद्ध बेबस कीरों- से जिस दिन पंख नहीं टूटेंगे जिस दिन तीर नहीं छूटेंगे दम तोड़ेंगी लौह सलाखें संन्यासिन हर गोली होगी । उस दिन मेरी होली होगी । शूल फूल को नहीं छलेगा देगा न दगा गुल बुलबुल को प्रेम करेगी हवा दीप से न्यौतेगी संध्या शतदल को रात गवाही देगी जिस दिन हर एक आँख के सपनों की भोर गले डालेगी जिस दिन माला दीनों को रत्नों की पीर कहीं भी नहीं दिखेगी नज़र मनुज की नेह लिखेगी हाथ हिलाते हर पत्थर की जिस दिन अमरित बोली होगी । उस दिन मेरी होली होगी ।