Saurabh verma 30 Mar 2023 गीत दुःखद #घर की याद #मां का प्यार#love 8883 0 Hindi :: हिंदी
शहर मैं जब आया , थोड़ा सा घबराया , देख उसकी भव्यता को, मन मेरा सकुचाया, मन मेरा उदास था , घर न मेरे पास था। पर मुझपे भी जिम्मेदारी थी। मां बाप के सपनो की सवारी थी। मां ने बताया था, पापा ने समझाया था, सपनो को तुम्हे सच करना है, जितना लड़ सको उतना लड़ना है। हार न मानना तुम कभी , घर को निहारना न तुम कभी, हम तो तेरे पास होंगे ,यही मान लेना, बस जीतना है ,तुझको ये ठान लेना, ये सोच कर आंखों में पानी आ गया। लगा ऐसा की मानो मैं अपने घर को पा गया, रुका तो खूब शहर में पर घर जैसा प्यार ना पाय। इतने सालो में मैं बहुत कम ही घर आया। घर तो मेरा पूर्ण संपन्न था , मेरे आने से हो गया विपन्न था, बाबा का प्यार अम्मा का दुलार , बहुत याद आता था पापा का मार। मेरे आने से मां खूब रोई थी , जैसे उसने पूरी दुनिया ही खोई थी, अब वो लगी थी अकेले रहने । थे पांच भाई नौ बहिनें, भुजा भाई प्यार बहिने, स्नेह भाई दुलार बहिनें। मैं पांचवा अभागा मां का प्यार ना पा पाया, उस दिन बहुत खुश हुआ जब घर वापस आया। ।।सौरभ वर्मा।।