Asim 07 Dec 2023 शायरी दुःखद immotion 20458 0 Hindi :: हिंदी
हैरत-फरोश हूँ में इस दौर-ए-जहालत में जहाँ बिन पैसे की मोहब्बत बेमाईंने बन गई, और बिन पैसे की हमदर्दि कबाड़ बन गई। हैरत-फरोश हूँ में इस दौर-ए-जहालत में जहाँ बिन पैसे की इज़्ज़त अधूरी बन गई, और फर्ज़, हुकूक और चाहत से ज़्यादा, पैसे की चाह असल राह बन गई। हैरत-फरोश हूँ में इस दौर-ए-जहालत में जहाँ आज़गी ने भी अब पैसो तले दम तोड़ा, और बिन पैसो की भलाई, एक बिन-दिखाई आह बन गई।