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मैं पंछी होती-कल कि इसे चिंता ना होती

Poonam Mishra 14 Jun 2023 गीत समाजिक बन जाते पंछी हम 6658 1 5 Hindi :: हिंदी

आज गगन में उड़ते पंछी 
को देखकर न जाने क्यों?
 मन यह सोच रहा है !
कितना ही अच्छा होता!
 अगर बन जाते पंछी हम!
 मस्त निर्भीक! होकर मस्त !
गगन में चलते!
 कल कि इसे चिंता ना होती!
 निर्भय होकर सोती मै!
 सब कष्टों को सह लेती!
 कभी न किसी से कहती मैं !
अगर जो गिरते आंखों से आंसू!
 खुद ही इस को संभालती मैं!
 नील गगन में स्वच्छंद होकर!
 उड़ जाती!
 क्यों? किसी के बंधन में
 मैं रहती !
ईश्वर के बनाए इस खूबसूरत जीवन को सुंदर ढंग से मैं जीती!
 शायद उतनी की ही चाहत होती!
 जितनी से आज गुजर जाता !
कल की चिंता कभी ना होती! आज ही में मैं खुश होती!
 इस जीवन के संघर्षों से
 मैं उठ जाती!
 कब का ऊपर!
 अगर मैं पंछी होती 
मस्त गगन में मैं उड़ती
स्वरचित लेखिका पूनम मिश्रा

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