संदीप कुमार सिंह 13 Jul 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 6257 0 Hindi :: हिंदी
(दोहा छंद) अब शायद लगता नहीं, सुधरेंगें हालात। रोग नासूर बन गया, मुश्किल में है रात।। अब शायद लगता नहीं, फिर होगी वह बात। बीता हुआ दिवस नहीं,आते हैं ओ मात।। अब शायद लगता नहीं, उनसे हो फिर बात। मेरे आंखों में वह रहे,तारा बन दिन रात।। अब शायद लगता नहीं,भाग्य सबल हो अस्त। खुशियां ही खुशियां मुझे,बाधाएं सब पस्त।। अब शायद लगता नहीं, दुख के दिन हो साथ। क्योंकि रहूं मैं जोश में,अपने साथी नाथ। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍🏼 जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....