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आजादी के जश्न में बाधक तत्व-

virendra kumar dewangan 14 Aug 2023 आलेख देश-प्रेम Deshprem 6153 0 Hindi :: हिंदी

‘हर घर तिरंगा’ व ‘मेरी माटी मेरा देश’ अभियान और 76 साल की आजादी के जश्न के बीच यह प्रश्न बार-बार सालता है कि हमें 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजी दासता से मुक्ति तो मिल गई, पर क्या हम वास्तव में आजादी का जश्न मनाने के काबिल हो गए। जबकि देश आज भी अनंत समस्याओं से जूझ रहा है और आमजन व खासजन उससे मुक्ति के लिए छटपटा रहे हैं।

कहा जाता है कि पहला सुख निरोगी काया होती है। देश की जनता की पहली और सबसे बड़ी समस्या यही है कि आज आधे से अधिक भारतवासी शारीरिक व मानसिक तौर पर बीमार हैं। देश का कोई नागरिक, यहां तक कि डाक्टर भी, यह दावा कतई नहीं कर सकता कि उसे कोई बीमारी नहीं है। 

किसी को डायबिटीज; हाई व लो बीपी, बेड कोलेस्ट्राल, कैंसर, मोटापा, थायराइड, इम्यूनिटी विक, कब्ज, पाईल्स, भगंदर, एनीमिया, जोड़ों का असहनीय दर्द है, तो कोई डिप्रेशन, टेंशन, एन्जाएटी, डिमेंशिया, न्यूरोप्राबलम और न जाने कौन-कौन सी अनगिनत शारीरिक व मानसिक बीमारियों की गिरफ्त में है।

हालांकि भारत सरकार आयुष्मान भारत योजना और राज्य सरकारें अपने-अपने सामर्थ्य के अनुसार अनेक स्वास्थ्यकर योजनाएं चला रही हैं, लेकिन अफसोस कि बुलंद व निरापद स्वास्थ्य आज भी दूर की कौड़ी बनकर रह गई है। 

इसके पीछे एक कारण तो यह कि आज का भारत खेलकूद, वाकिंग, जागिंग, योगासन व प्राणायाम यानी शारीरिक गतिविधियों से दूर होकर आरामतलबी हो गया है, जिससे उसके शरीर में बीमारियों का बसेरा हो चुका है। 

सरकारों को चाहिए कि वो नागरिकों के बेहतर स्वास्थ्य के लिए सरकारी अस्पतालों व मेडिकल कालेजों में अधिकतम सुविधाओं में तो इजाफा करे ही करे; पर एलोपैथी के समकक्ष आयुर्वेदिक, होम्योपैथी, यूनानी व प्राकृतिक चिकित्सा को भी बढ़ावा दे और सर्वसुलभ करवाए, तभी लोगों का सेहत बेहतर हो सकता है।

दूसरा यह कि साग-सब्जी, दाल, चावल, गेहूं, फल-फ्रूट, पानी, दूध-दही समेत तमाम पेय व खाद्य पदार्थों में स्वार्थवश इस कदर मिलावट का जहर घोल दिया गया है कि इंसान उसे उदरपूर्ति के लिए खाता-पीता है, तो उसके शरीर में अनजाने ही जहरीले पदार्थों का समावेश हो जाता है और वह बीमारियों के मकड़जाल में उलझता चला जाता है।

देश के तमाम जलस्त्रोत दूषित कर दिए गए हैं। फिर चाहे वे नदी, नाले, पोखर, तालाब हों या कुंआ-बावली। पानी के ये अजस्त्र स्त्रोत पीने के लायक तो दूर, आचमन करने, नहाने, कुल्ला करने और कपड़े धोने के लायक भी नहीं रह गए हैं।

रहा सहा कसर प्लास्टिक, मोबाइल का लत, फास्ट व पैकेज्ड फूड, घर-बाहर के तनावों ने इंसानों को जकड़ लिया है और बीमार बना दिया है।

इतना ही नहीं, सड़कों का रेलपेल, धक्कमधक्का, भीड़भाड़ तथा बेतहाशा बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं ने लोगों को भयभीत कर रखा है। आज कोई व्यक्ति यह दावा नहीं कर सकता कि वो घर से निकला, तो सही-सही घर पहुंच ही जाएगा। इसके पीछे विस्फोटक जनसंख्या है, जो हर सड़क को दो-चार साल में राहगीरों, मुसाफिरों व गाड़ी-मोटरों से भर देती है और चलने के लायक नहीं छोड़ती। 

जनसंख्या की बेलगाम बढ़ती समस्या ने बेरोजगारी, महंगाई, गरीबी, दंगा-फसाद देश को मुफ्त में दे दिया है और देश अनगिनत समस्याओं से जूझ रहा है।

यही नहीं, आतंकवाद, फिर चाहे व आंतरिक हो या सीमापार; गुंडों, देशद्रोहियों, भ्रष्टाचारियों, वन व भूमाफियाओं की मिलीभगत से आमजनों के मन-मस्तिष्क में भय का माहौल बना रखा है।

ऊपर से टुच्ची राजनीति ने सारा वातावरण दूषित कर रखा है, इसीलिए शिक्षा में सुधार, चुनाव सुधार, पुलिस सुधार और न्यायिक व्यवस्था में सुधार की शख्त जरूरत है।

यह बात नहीं कि आजादी के बाद देश में कुछ काम नहीं हुआ है। देश में काम भी खूब हुए हैं, पर विकास योजनाओं का समुचित व सम्यक क्रियान्वयन न होने से ये विसंगतियां उठ खड़ी हुई हैं, जिससे मुक्ति मिलने या सुधार करने के उपरांत ही आजादी का असल जश्न मनाया जा सकता है, उसके पहले नहीं।
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टीप-अनुरोध है कि रचना पढ़ने के उपरांत लाइक, कमेंट व शेयर करना मत भूलिए।

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