virendra kumar dewangan 10 Aug 2023 आलेख दुःखद Social 7527 0 Hindi :: हिंदी
छग के बिलासपुर जिले के पचपेड़ी क्षेत्र की ग्रामपंचायत सोन के निवासी बालचंद पटेल के दोनों बेटे कमलेश और बलेश 23 जून 2022 की रात जमीन पर सोए हुए थे. 24 जून की सुबह छोटा बेटा बलेश बड़े भाई कमलेश को उठाने लगा. तभी बिस्तर के नीचे छिपे एक सर्प ने बलेश की बांह में दंश मार दिया. उन्होंने घटना की तुरंत जानकारी परिजनों को दी. स्वजन बलेश को पास के गांव कुकुर्दीकला में बैगा के पास ले गए. वहां बैगा घर पर नहीं होने से वे उसे गोडाडीह गांव ले कर गए. वहां मौजूद बैगा ने उन्हें बच्चे को अस्पताल ले जाने की सलाह भी दी. पर वे बच्चे को अस्पताल न जा कर घर ले आए, जहां बच्चे की मौत हो गई. कोटवार की सूचना पर पुलिस पहुंची और शव का पोस्टमार्टम करवाई. छग के जशपुर जिले का फरसाबहार, पत्थलगांव, बगीचा, कांसाबेल एवं तपकरा का इलाका भुरभुरी मिट्टी, गर्म आबोहवा व दीगर हालात के चलते जहरीले सर्पों के लिए बेहद मुफीद जगह माना जाता है. इसलिए यह छग का नागलोक कहलाता है. यहां पाए जाने वाले विषैले सांपों के दंश से हर साल मरने वालों की संख्या पचास से अधिक पहुंच जाता है. साल 2005 से मई 2017 तक 425 लोग मौत के मुंह में समा चुके हैं. यानी औसतन हर साल 45-50 लोग सर्पदंश से मारे जाते हैं. इस में भी स्नैकबाइट से जशपुर ब्लाक में मौतें सर्वाधिक होती हैं. जशपुर जिले में 24 प्रजाति के सांप पाए जाते हैं. इसमें भी नाग के दो, करैत के दो और वाइपर के दो; इस तरह कुल 6 प्रजातियां जहरीली और जानलेवा हैं. इस के अलावा बाकी 18 प्रजाति और हैं, जो बिना जहर वाले सांपों के नाम से जाना जाता है. ये हैं-अजगर, धामना, ढोंढ़िया, हुरहुरिया सहित कई अन्य प्रजातियां. साथ में 14 सांप की जातियां और हैं, जिन्हें सामान्य तौर पर जहरीले सांपों में गिने जाता है. उसमें एक करैत का हमशक्ल चिंगराज (कामन वौल्फ) भी है, जो जहरीली प्रकृति का है. दरअसल, मुल्क के वनीय क्षेत्रों में कुछ रंगबिरंगे सर्प होते हैं, जिन्हें विषैला समझ लिया जाता है. इनसे डाक्टर भी दिग्भ्रमित रहते हैं. जैसे-ताम्र अलंकृत सांप (कौपर हेड), कुकरी (कौमन कुकरी), इस तरह से और भी कुछ सांप हैं, जिन्हें जहरीले सांपों की श्रेणी में जानकारी के अभाव में गिन लिया जाता है. जीडब्ल्यूएनएस संस्था के संस्थापक कैसर हुसैन का कहना है कि दरअसल एक जैसे दिखने वाले सांपों को विषयुक्त समझ लेने से ही लोग भ्रमित हो जाते हैं. यही कारण है कि विषहीन सर्प के काटे जाने के बाद जब झाड़फूंक कराया जाता है, तब बगैर किसी दवा के पीड़ित बच जाता है. विचारणीय मुद्दा यही कि यहीं से अंधविश्वासी धारणा फलनेफूलने लगता है कि फलां महिला, पुरुष या बच्चा तो बिना दवाई के झाड़फूंक मात्र से ठीक हो गया. फिर मैं क्यों ठीक नहीं हो सकता? ऐसे हालात देश के सभी वनक्षेत्रों में है. सर्पदंश से मप्र, झारखंड, असम, छग, ओड़िशा, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र सबसे ज्यादा प्रभावित हैं. लिहाजा, वन्यबहुल क्षेत्रों में सर्प ज्ञान केंद्र खोलने की सख्त जरूरत है, ताकि वनवासियों को सही जानकारी मिले और वे सर्पदंश जैसे मामले में अंधविश्वासी धारणाओं से मुक्ति पाएं. इसके विपरीत जहरीले सर्प के काटने से एंटी स्नैक वेनम लेने की जरूरत होती है, जो क्षेत्र के सिविल अस्पताल, प्राथमिक एवं मिनी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में उपलब्ध रहता है. इसके बावजूद ज्यादातर लोग पीड़ित को समय पर अस्पताल ले जाने के बजाय उसे बैगा-गुनिया के पास ले जाते हैं. दुखदायी तो यही कि तुरंत इलाज के अभाव में पीड़ित के शरीर में विष फैल जाने से उसकी मौत हो जाती है. इसका प्राथमिक उपचार यह कि सर्पदंश का शिकार होने पर घबराहट या डरने से बचना चाहिए. इससे शरीर का रक्तदाब बढ़ जाता है और सर्प का विष तन में तेजी से फैलने लगता है. सर्पदंश के शिकार व्यक्ति से लगातार बात करते रहना चाहिए, ताकि वह सो न पाए. सर्प के काटे स्थान से थोड़े ऊपर साफ कपड़ा या रस्सी से बांध देना चाहिए, जिससे सर्प का जहर शरीर में फैल न पाए. पीड़ित को बगैर विलंब के नजदीकी चिकित्सा कंेंद्र ले जाना चाहिए. ऐसे में कई बैगा व गुनिया तांबे के सिक्के और थाली-लोटे के जरिए मृतक की जान को वापस लाने का ढोंग करते हैं, जो परिवारजनों व बैगा-गुनियाओं के लिए मृग मरीचिका साबित होती है. --00-- अनुरोध है कि पढ़ने के उपरांत रचना को लाइक, कमेंट व शेयर करना मत भूलिए।