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भारत रत्न बाबा साहेब डॉ भीमराव आम्बेडकर

Pagal Sunderpuria 30 Mar 2023 आलेख समाजिक भीम, बाबा साहेब, पागल शायर, आम्बेडकर वाद, पागल सुंदरपुरीया 19643 0 Hindi :: हिंदी

14 अप्रैल का दिन बहुत ही खास दिन होता है क्यूंकि 14 अप्रैल को एक बाबा की जयंती है। बाबा का मतलब कोई पाखंडी साधु नहीं, जो सच में बाबा थे।
मैं तो कहता हूं कि अगर आप कोई धार्मिक तीर्थ के दर्शन करने लिए मीलों का सफ़र तय करते हैं। उससे अच्छा यह है कि आप बाबा साहेब की या कोई भी महापुरुष , विद्वान, संत, जिसने जीवन में संघर्ष किया हो उसके जीवन के दर्शन कर लेने चाहिए। घर में रहकर किसी महापुरुष की जीवनी पढ़ लेना और उस जीवनी से सीख लेना बहुत बड़ा तीर्थ दर्शन हो जाता है। 

आज से 130 वर्ष पहले 14 अप्रैल 1891 को सूबेदार रामजी सकपाल के घर माता भीमाबाई की कोख से भिवा ने जन्म लिया था जो भविष्य में भारत रत्न बाबा साहेब डॉ. भीमराव आम्बेडकर के नाम से पूरे विश्व में प्रसिद्ध हुए। बाबा साहेब का परिवार हिन्दू महार जाति से सम्बन्धित था जिसे उस वक्त अछूत कहा जाता था। उनका परिवार कबीर पंथ को मानता था।  बाबा साहेब के पूर्वज भी ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में थे। बाबा साहेब का जन्म मध्यप्रदेश के महु नगर (अब डॉ. आम्बेडकर नगर) की छावनी में हुआ क्यूंकि उनके पिता भारतीय सेना में कार्यरत थे। लेकिन उनका पैतृक गांव महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में आंबड़वे था। बाबा साहेब जब पांच वर्ष के थे तो उनकी माता का निधन हो गया तो उनका पालन पोषण उनकी भुआ ने किया था,  भारत के संविधान के पिता बाबा साहेब दुनियां के प्रमुख विद्वानों में एक थे और भारत में तो वे सिर्फ़ एक ही थे। 

बाबा साहेब एक विचारधारा तथा दर्शन हैं। स्वतंत्रता, समानता, भाईचारा, बौद्ध धर्म, विज्ञानवाद, मानवतावाद, सत्य, अहिंसा आदि के विषय बाबा साहेब के सिद्धान्त हैं। छुआछूत को नष्ट करना, दलितों में सामाजिक सुधार, भारत में बौद्ध धर्म का प्रचार एवं प्रचार, भारतीय संविधान में निहीत अधिकारों तथा मौलिक हकों की रक्षा करना, एक नैतिक तथा जातिमुक्त समाज की रचना और भारत देश प्रगती यह प्रमुख उद्देश शामील हैं। आम्बेडकरवाद सामाजिक, राजनितीक तथा धार्मिक विचारधारा हैं। जो उस समाज के कोने से निकली है जो समाज पिछले पांच हजार सालों से मनुवादी सोच द्वारा शोषित करके दबाया गया था, जिस समाज को आज हम दलित, पिछड़ावर्ग कहते है। जिसे पहले हरिजन या शूद्र, अछूत कहा जाता था। दलित समाज का मुख्य समाज से पीछे रहने या इस समाज से दूसरे समाज के नफ़रत करने का मुख्य कारण हिन्दू धर्म का प्राचीन धर्मशास्त्र मनुस्मृति ही रहा है। ओशो अपनी एक किताब में जिक्र करते है की ब्राह्मणों ने हज़ारों वर्षों से कहा था कि तुम शूद्र हो तुम्हारा काम गन्दगी साफ करना ही है और शूद्रों ने भी हजारों वर्षों से मान रखा था कि हम शूद्र है इसलिए ज्ञानी नहीं बन सकते,। यह बात सत्य है कि बाबा साहेब ने उस प्रथा को तोड़ा है, आगे ओशो लिखते है कि क्यों इससे पहले के हज़ारों वर्ष कोई आम्बेडकर पैदा नहीं हुआ क्यूंकि मनुवादियों ने कभी पैदा नहीं होने दिया, वो कहावत सच में सच हो गई "कोयले की खानों से ही हीरे निकलते हैं" बाबा साहेब का धर्म परिवर्तन करने कारण भी यही था, क्यूंकि बाबा साहेब अक्सर कहते थे "हालांकि मैं एक अछूत हिन्दू के रूप में पैदा हुआ हूँ, लेकिन मैं एक हिन्दू के रूप में हरगिज नहीं मरूँगा" कि जिस धर्म में सबके लिए समानता नहीं है तो उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया क्यूंकि बौद्ध धर्म के मूल सिद्धान्त बुद्धि का प्रयोग, प्यार, समानता थी और है। लेकिन एक बात ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि बाबा साहेब का परिवार कबीर पंथ को मानता था, बाबा साहेब व उनका का परिवार संत कबीर की विचारधारा से बहुत प्रभावित था तथा संत कबीर के ज्ञान को आधार बनाकर जीवन जीते थे। संत कबीर  ने पाखंडवाद तथा सामाजिक बुराइयों जैसे जातिवाद, गलत धार्मिक मान्यताएं, जीव हिंसा, नशाखोरी आदि को दूर किया। और संत कबीर भी हिन्दू धर्म की रूढ़िवादी सोच के खिलाफ थे, तो फिर बाबा साहेब ने बौद्ध धर्म क्यों अपनाया? इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि बाबा साहेब के परिवारिक मित्र एवं लेखक दादा केलुस्कर द्वारा खुद की लिखी 'बुद्ध की जीवनी' उन्हें भेंट दी गयी। इसे पढकर उन्होंने पहली बार गौतम बुद्ध व बौद्ध धर्म को जाना एवं उनकी शिक्षा से प्रभावित हुए थे और दूसरा कारण यह हो सकता है कि वे अपने सिद्धान्त के अनुसार स्वतंत्र होने के कारण जो उन्हें ज्यादा प्रभावशाली लगा इसलिए उन्होंने बौद्ध धर्म को अपनाया, बाबा साहेब की महान सोच और उनके जीवन के बारे में कोई भी लेखक एक घण्टे, एक दिन, एक सप्ताह, एक महीने, एक साल में समझ कर व्याख्या करके लिख से ऐसा मुमकिन नहीं है। बाबा साहेब की दो पत्नियां थीं पहली पत्नी रमाबाई वह जिससे पांचवीं में पढ़ते वक्त 1906 में बाल विवाह हुआ और गंभीर बीमारी के चलते रमाबाई का 1935 निधन हो गया था। बाबा साहेब जब भारतीय संविधान के मसौदे को पूरा करने के बाद नीन्द की कमी से पीड़ित हो गए थे , उनके पैरों में न्यूरोपैथिक दर्द था, और इंसुलिन और होम्योपैथिक दवाएं ले रहे थे। वह इलाज के लिए मुम्बई गए, और वहां डॉक्टर शारदा कबीर से मिले, जो 15 अप्रैल 1948 के बाद उनकी दूसरी पत्नी हुई, विवाह के बाद डॉ शारदा कबीर ने बाद में अपना नाम सविता आम्बेडकर अपनाया, बाबा साहेब के चार पुत्र एवं एक पुत्री थीं, यशवंत आम्बेडकर को छोड़कर सभी बच्चों की बचपन में मृत्यु हो गई थी। बाबा साहेब गौतम बुद्ध, संत कबीर, महात्मा ज्योतिराव फूले तीनों को अपना गुरु मानते थे। बाबा साहेब की मेहनत से पूरे भारत के लोगों को संविधान ने समानता, स्वतंत्रता, मूल अधिकार मिले है जिसकी वजह से महिलाएं , दलित, आदिवासी भी मुख्य भूमिका में कार्य कर रहे है। लेकिन ये सिर्फ़ कानून की नज़रों में, आज भी कुछ स्वर्ण लोग दलितों को स्वीकार नहीं करते, वैसे तो बाबा साहेब को भारत सरकार द्वारा भारतरत्न से नवाजा गिया है पर भारत के स्वर्ण लोग दलितों को अपने समान समझेंगे, असल में बाबा साहेब की विचारधारा उस दिन खुश होगी, अब मुझे भारत के लोगों ने भारत रत्न दिया है। 



बाबा साहेब की शिक्षा :-

7 नवम्बर 1900 को रामजी सकपाल ने सातारा की गवर्न्मेण्ट हाइस्कूल (अब प्रताप हाई स्कूल) में अपने बेटे भीमराव का नाम भिवा रामजी आंबडवेकर दर्ज कराया। उनके बचपन का नाम 'भिवा' था। आम्बेडकर का मूल उपनाम सकपाल की बजाय आंबडवेकर लिखवाया था, जो कि

उनके आंबडवे गाँव से संबंधित था। क्योंकी कोकण प्रांत के लोग अपना उपनाम गाँव के नाम से रखते थे, अतः आम्बेडकर के आंबडवे गाँव से आंबडवेकर उपनाम स्कूल में दर्ज करवाया गया। बाद में एक देवरुखे ब्राह्मण शिक्षक कृष्णा महादेव आंबेडकर जो उनसे विशेष स्नेह रखते थे, ने उनके नाम से 'आंबडवेकर' हटाकर अपना सरल 'आंबेडकर' उपनाम जोड़ दिया। तब से आज तक वे आंबेडकर नाम से जाने जाते हैं।

बचपन के दिनों में बाबा साहेब को अपनी दिनचर्या जाति के कारण समाजिक प्रतिरोध का सामना करना पड़ता था, स्कूल में पढ़ाई के समय भी उन्हें छुआछूत के कारण क्लास से बाहर कर दिया जाता था। परन्तु आज महाराष्ट्र में 7 नवम्बर (यानी जिस दिन बाबा साहेब का स्कूल में  नाम दर्ज हुआ था) को विद्यार्थी दिवस मनाया जाता है। हां उस दिन बाबा साहेब को भिवा कहकर संबोधन किया जाता है। जब वे अंग्रेजी चौथी कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण हुए, तब क्योंकि यह अछूतों में असामान्य बात थी, इसलिए भीमराव की इस सफलता को अछूतों के बीच सार्वजनिक समारोह के रूप में मनाया गया, और उनके परिवार के मित्र एवं लेखक दादा केलुस्कर द्वारा खुद की लिखी 'बुद्ध की जीवनी' उन्हें भेंट दी गयी। इसे पढकर उन्होंने पहली बार गौतम बुद्ध व बौद्ध धर्म को जाना एवं उनकी शिक्षा से प्रभावित हुए। रामजी सकपाल परिवार के साथ बंबई (अब मुंबई) चले गए। अप्रैल 1906 में, जब भीमराव लगभग 15 वर्ष आयु के थे, तो नौ साल की लड़की रमाबाई से उनकी शादी कराई गई थी। तब वे पांचवी अंग्रेजी कक्षा में पढ़ रहे थे। उन दिनों भारत में बाल-विवाह का प्रचलन था और उसके बाद बाबा साहेब ने माध्यमिक शिक्षा गवर्मेंट हाईस्कूल मुंबई से व 1912 तक, उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीतिक विज्ञान में कला स्नातन (बी॰ए॰) प्राप्त की, और बड़ौदा राज्य सरकार के साथ काम करने लगे। 1913 में, आम्बेडकर 22 साल की आयु में संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए जहां उन्हें सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय (बड़ौदा के गायकवाड़) द्वारा स्थापित एक योजना के तहत न्यूयॉर्क शहर स्थित कोलंबिया विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर शिक्षा के अवसर प्रदान करने के लिए तीन साल के लिए 11.50 डॉलर प्रति माह बड़ौदा राज्य की छात्रवृत्ति प्रदान की गई थी। वहां पहुँचने के तुरन्त बाद वे लिविंगस्टन हॉल में पारसी मित्र नवल भातेना के साथ बस गए। जून 1915 में उन्होंने अपनी कला स्नातकोत्तर (एम॰ए॰) परीक्षा पास की, जिसमें अर्थशास्त्र प्रमुख विषय, और समाजशास्त्र, इतिहास, दर्शनशास्त्र और मानव विज्ञान यह अन्य विषय थे। उन्होंने स्नातकोत्तर के लिए एंशियंट इंडियन्स कॉमर्स (प्राचीन भारतीय वाणिज्य) विषय पर शोध कार्य प्रस्तुत किया।

1916 में, उन्हें अपना दूसरा शोध कार्य, नेशनल डिविडेंड ऑफ इंडिया - ए हिस्टोरिक एंड एनालिटिकल स्टडी के लिए दूसरी कला स्नातकोत्तर प्रदान की गई, और अन्ततः उन्होंने लंदन की राह ली। 1916 में अपने तीसरे शोध कार्य इवोल्युशन ओफ प्रोविन्शिअल फिनान्स इन ब्रिटिश इंडिया के लिए अर्थशास्त्र में पीएचडी प्राप्त की, अपने शोध कार्य को प्रकाशित करने के बाद 1927 में अधिकृत रुप से पीएचडी प्रदान की गई। 9 मई को, उन्होंने मानव विज्ञानी एलेक्सजेंडर गोलदनवेजर द्वारा आयोजित एक सेमिनार में भारत में जातियां उनकी प्रणाली, उत्पत्ति और विकास नामक एक शोध पत्र प्रस्तुत किया, जो उनका पहला प्रकाशित पत्र था। 3 वर्ष तक की अवधि के लिये मिली हुई छात्रवृत्ति का उपयोग उन्होंने केवल दो वर्षों में अमेरिका में पाठ्यक्रम पूरा करने में किया और 1916 में वे लंदन गए, और वहाँ उन्होंने ग्रेज़ इन में बैरिस्टर कोर्स (विधि अध्ययन) के लिए प्रवेश लिया, और साथ ही लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में भी प्रवेश लिया जहां उन्होंने अर्थशास्त्र की डाॅक्टरेट थीसिस पर काम करना शुरू किया। जून 1917 में, विवश होकर उन्हें अपना अध्ययन अस्थायी तौरपर बीच में ही छोड़ कर भारत लौट आए क्योंकि बड़ौदा राज्य से उनकी छात्रवृत्ति समाप्त हो गई थी।बड़ौदा राज्य के सेना सचिव के रूप में काम करते हुये अपने जीवन में अचानक फिर से आये भेदभाव से डॉ॰ भीमराव आम्बेडकर निराश हो गये और अपनी नौकरी छोड़ एक निजी ट्यूटर और लेखाकार के रूप में काम करने लगे। यहाँ तक कि उन्होंने अपना परामर्श व्यवसाय भी आरम्भ किया जो उनकी सामाजिक स्थिति के कारण विफल रहा। अपने एक अंग्रेज जानकार मुंबई के पूर्व राज्यपाल लॉर्ड सिडनेम के कारण उन्हें मुंबई के सिडनेम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनोमिक्स मे राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्रोफेसर के रूप में नौकरी मिल गयी। 1920 में कोल्हापुर के शाहू महाराज, अपने पारसी मित्र के सहयोग और कुछ निजी बचत के सहयोग से वो एक बार फिर से इंग्लैंड वापस जाने में सफ़ल हो पाए तथा 1921 में विज्ञान स्नातकोत्तर (एम॰एससी॰) प्राप्त की, जिसके लिए उन्होंने 'प्रोवेन्शियल डीसेन्ट्रलाईज़ेशन ऑफ इम्पीरियल फायनेन्स इन ब्रिटिश इण्डिया' (ब्रिटिश भारत में शाही अर्थ व्यवस्था का प्रांतीय विकेंद्रीकरण) खोज ग्रन्थ प्रस्तुत किया था। 1922 में, उन्हें ग्रेज इन ने बैरिस्टर-एट-लॉज डिग्री प्रदान की और उन्हें ब्रिटिश बार में बैरिस्टर के रूप में प्रवेश मिल गया। 1923 में, उन्होंने अर्थशास्त्र में डी॰एससी॰ (डॉक्टर ऑफ साईंस) उपाधि प्राप्त की। उनकी थीसिस "दी प्राब्लम आफ दि रुपी: इट्स ओरिजिन एंड इट्स सॉल्यूशन" (रुपये की समस्या: इसकी उत्पत्ति और इसका समाधान) पर थी। लंदन का अध्ययन पूर्ण कर भारत वापस लौटते हुये भीमराव आम्बेडकर तीन महीने जर्मनी में रुके, जहाँ उन्होंने अपना अर्थशास्त्र का अध्ययन, बॉन विश्वविद्यालय में जारी रखा। किंतु समय की कमी से वे विश्वविद्यालय में अधिक नहीं ठहर सकें। उनकी तीसरी और चौथी डॉक्टरेट्स (एलएल॰डी॰, कोलंबिया विश्वविद्यालय, 1952 और डी॰लिट॰, उस्मानिया विश्वविद्यालय, 1953) सम्मानित उपाधियाँ थीं, बाबा साहेब का राजनीतिक कैरियर 1926 में शुरू हुआ और 1956 तक वो राजनीतिक क्षेत्र में विभिन्न पदों पर रहे। दिसंबर 1926 में, मुंबई के गवर्नर ने उन्हें मुंबई विधान परिषद के सदस्य के रूप में नामित किया, उन्होंने अपने कर्तव्यों को गंभीरता से लिया, और अक्सर आर्थिक मामलों पर भाषण दिये। वे 1936 तक बॉम्बे लेजिस्लेटिव काउंसिल के सदस्य थे। उसके बाद ऑल इंडिया शेड्यूल्ड कास्ट्स फेडरेशन एक सामाजिक-राजनीतिक संगठन था जिसकी स्थापना दलित समुदाय के अधिकारों के लिए अभियान चलाने के लिए 1942 में आंबेडकर द्वारा की गई थी। वर्ष 1942 से 1946 के दौरान, आंबेडकर ने रक्षा सलाहकार समिति और वाइसराय की कार्यकारी परिषद में श्रम मंत्री के रूप में सेवारत रहे।

आम्बेडकर ने अपनी राजनीतिक पार्टी को अखिल भारतीय अनुसूचित जाति फेडरेशन (शेड्युल्ड कास्ट फेडरेशन) में बदलते देखा, हालांकि 1946 में आयोजित भारत के संविधान सभा के लिए हुये चुनाव में खराब प्रदर्शन किया। बाद में वह बंगाल जहां मुस्लिम लीग सत्ता में थी वहां से संविधान सभा में चुने गए थे।

गांधी व कांग्रेस की कटु आलोचना के बावजूद आम्बेडकर की प्रतिष्ठा एक अद्वितीय विद्वान और विधिवेत्ता की थी जिसके कारण जब, 15 अगस्त 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, कांग्रेस के नेतृत्व वाली नई सरकार अस्तित्व में आई तो उसने बाबा साहेब को देश के पहले क़ानून एवं न्याय मंत्री के रूप में सेवा करने के लिए आमंत्रित किया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। 29 अगस्त 1947 को, बाबा साहेब को स्वतंत्र भारत के नए संविधान की रचना के लिए बनी संविधान की मसौदा समिति के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया। इस कार्य में बाबा साहेब का शुरुआती बौद्ध संघ रीतियों और अन्य बौद्ध ग्रंथों का अध्ययन भी काम आया।आम्बेडकर एक बुद्धिमान संविधान विशेषज्ञ थे, उन्होंने लगभग 60 देशों के संविधानों का अध्ययन किया था। बाबा साहेब को "भारत के संविधान का पिता" के रूप में मान्यता प्राप्त है। बाबा साहेब द्वारा तैयार किए गए संविधान के पाठ में व्यक्तिगत नागरिकों के लिए नागरिक स्वतंत्रता की एक विस्तृत श्रृंखला के लिए संवैधानिक गारंटी और सुरक्षा प्रदान की गई है, जिसमें धर्म की आजादी, छुआछूत को खत्म करना, और भेदभाव के सभी रूपों का उल्लंघन करना शामिल है। बाबा साहेब ने महिलाओं के लिए व्यापक आर्थिक और सामाजिक अधिकारों के लिए तर्क दिया, और अनुसूचित जातियों (एससी) और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के सदस्यों के लिए नागरिक सेवाओं, स्कूलों और कॉलेजों में नौकरियों के आरक्षण की व्यवस्था शुरू करने के लिए असेंबली का समर्थन जीता, जो कि सकारात्मक कार्रवाई थी। भारत के सांसदों ने इन उपायों के माध्यम से भारत की निराशाजनक कक्षाओं के लिए सामाजिक-आर्थिक असमानताओं और अवसरों की कमी को खत्म करने की उम्मीद की। संविधान सभा द्वारा 26 नवंबर 1949 को संविधान अपनाया गया और 26 जनवरी 1950 को देश लागू कर दिया गया। बाबा साहेब दो बार भारतीय संसद के ऊपरी सदन राज्य सभा में महाराष्ट्र का प्रतिनिधित्व करने वाले भारत की संसद के सदस्य बने थे। राज्यसभा सदस्य के रूप में उनका पहला कार्यकाल 3 अप्रैल 1952 से 2 अप्रैल 1956 के बीच था, और उनका दूसरा कार्यकाल 3 अप्रैल 1956 से 2 अप्रैल 1962 तक आयोजित किया जाना था, लेकिन कार्यकाल समाप्त होने से पहले, 6 दिसंबर 1956 को उनका निधन हो गया। लेकिन वो उनकी शारीरिक मौत थी, बाबा साहेब आज भी वैचारिक रूप से जिन्दा हैं।

जय बाबा साहेब
जय भीम

✍️पागल सुंदरपुरीया

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