पिन्दु कुमार 25 Oct 2023 आलेख समाजिक कृषक का जीवन 14734 0 Hindi :: हिंदी
कृषक होते कितना परिश्रमी करते रहते हर वक्त अपने खेत - खलिहानों में कार्य चाहे गर्मी ,वर्षा हो या सर्दी के मौसमों का बहार सूर्य के गर्मी से तपते ठण्डी हवाओं से ठिठुरता बाढ - सुखाड़ हैं मार हैं झेलते तब भी न घबराते वो सिर पे पगड़ी धारण हैं करते रखते हैं कंधे पे गमछा कमर में धोती लपेटे रहते यही है उनका नित पोषाक बाबू -भैया कह के सभी को पुकारते करते हैं सभी को आदर सम्मान अन्य दाता उन्हें सभी कहते करते हैं सभी उनका आदर सम्मान टूटी -फूटी झोपड़ियों में रहकर बीता देते गर्मी, वर्षा एवं सर्दी चाहे हो कोई आँधी तूफान अपने परिवार का ध्यान हैं रखते सिखलाते उनको अच्छे करने को हर वक्त कार्य रूखी - सुखी रोटी खाकर अपने पेट पालते, घर परिवार अपने बच्चों के सपने को पुरा करने को रहते तैयार चाहे न हो उनके यहाँ अधिक धन तो भी वो फसलों को औने-पौने दाम में बेचकर ना खूश होकर भी खूश हो जाता है। कितना पीड़ा सहते वो तब भी न उनको कभी मिलता आराम साँप ,केंचुआ तथा मोर होता उनका सच्चा मित्र जो हर वक्त रहता उनके साथ केंचुआ उनके लिए उर्बक बन जाता साँप तथा मोर कीड़े - मकोड़े को काम तमाम कर जाता तभी तो होता है अच्छा फसल उनके खेतों में .....farmer हमारे कृषक बंधु बहुत परिश्रमी होते हैं तो भी उनके पास अधिक धन नहीं हो पाता है इसका क्या कारण है उसपे सभी को सोच - विचार करना चाहिए - युवा लेखक पिन्टु कुमार