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अब तो चलना ही है-आकाश के नीले तन तक

DIGVIJAY NATH DUBEY 14 Jun 2023 कविताएँ समाजिक #hindikavitayen #digdaraham #hindisayari 6110 0 Hindi :: हिंदी

प्रस्थान किया हूं जब से मैं
एक कंटक पथ पर चलने को
पैरों में छाले बड़े हुए
सर पैर दर्द है फटने को

एक नए सफर को चला हूं जो
मेरी मंजिल तक ले जायेगी
थोड़ी कड़वी थोड़ी मीठी
अथक परिश्रम करवाएगी

चलने दो इन राहों में
थोड़ी समय की बातें हैं
अंधकार से कीर्तिमान तक
आगे बस बरसाते हैं

अब क्या डरना मोह रोग के
तृष्णा भरी जुदाई में
कर्तव्यों के खातिर भुला 
आतुर मन अगुवाई में

रास्ते हैं एक लंबी लीला
अजब सफर की अजब है लीला
हर एक कदम पे घूम रहा है
मृत्यु का भयावह कीला 

कभी पहुंच जाता हूं पथ तक
थोड़ा सा ही रह जाता है
उसकी कसक इस आतुर मन को
आगे और खींचा जाता है

पर उम्मीद है पूरी मेरी
पहुंचूंगा वो दिन आएगा
जब आकाश के नीले तन तक
पृथ्वी का समतल जायेगा 

बहुत कड़ी है यही परीक्षा
पास इसे तो करना ही है
जिस पथ पर निकला हो सोच के
वहां तलक तो चलना ही है ।।

दिग्दर्शन !

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