REETA KUSHWAHA 02 Jul 2023 आलेख धार्मिक कुछ सवाल 6384 0 Hindi :: हिंदी
कुछ सवाल है, कह सकती हूं कि बस यूँही, लेकिन क्या सच में बस यूही है, नही यू ही कुछ भी नही है। सालो से चला आ रहा, देखा गया, सुना हुआ है सब ।और सालो से ही मन में जन्म लेते हुए सवाल फिर उनसे जन्म लेता हुआ द्वन्द्व ।कि आखिर ऐसा क्यू। कभी कभी सोचती हूं कि मेरे ही मन में ऐसे विचार आते है या किसी और के भी मन में।पता नही, लेकिन मुझे लगता है कि ऐसा नही हो सकता कि जो मुझे लगता है वो किसी और को न लगा हो। चलिए आप सब से पूछती हू वो सवाल जिनके जवाब मुझे अभी तक नही मिले। मेरा पहला सवाल 1👉 सीता जी जिनके बारे में प्रसंग आता है कि उन्होने बचपन में ही शिव के उस धनुष को उठा लिया था जिसे अच्छे अच्छे योद्धा हिला तक नही पाते थे तो सीता जी ने सामर्थ्यवान होते हुए भी(जब्कि बचपन मे इतनी शक्तिशाली थी तो क्या बड़े होने पर वो निर्बल हो गई थी।) रावण से स्वयं युद्ध क्यो नही किया।तर्क देने वाले कह सकते है कि अपने पति का मान-सम्मान और यश कीर्ति के लिए उन्होने सब सहा क्योकि उन्हे विश्वास था कि उनके पति राम युद्ध में विजयी होगे तो उनकी यश कीर्ति हर जगह फैलेगी लेकिन यदि सीता जी अपने मान सम्मान की रक्षा हेतु स्वयं युद्ध करती और विजयी होती तो क्या राम के मान सम्मान की हानि हो जाती। 2 सवाल 👉 वैसे तो वर्ण व्यवस्था कर्म के आधार पर थी लेकिन जैसे ही इस व्यवस्था का रूप जन्मगत हो गया तो जिस वर्ग में शूद्रों व अछूतो को रखा गया उनके साथ भेदभाव व अत्याचार होने लगे। शूद्रों को बताया गया कि तुम्हारा जन्म ईश्वर के चरणों से हुआ है इसलिए तुम बाकी सबके सेवक हो, चलो यदि ऐसा मान भी लिया जाए कि शूद्रों का जन्म ईश्वर के चरणो से हुआ है तब तो वो शूद्र सबसे पहले मान सम्मान के अधिकारी हो जाते है क्योकि उनके साथ दुर्व्यवहार रखने वाले ही अपनी ईश्वर भक्ति में सर्वप्रथम अपने ईश्वर के चरण स्पर्श करते है,अपना माथा चरणो में टेकते है, भूल-चूक हो जाने पर चरणो मे गिरकर क्षमा मांगते है, चरणों की धूल मागते है और गजब की बात है कि उन्ही चरणो से उत्पन्न हुए शूद्रो को हेय समझते है तो क्या ये ईश्वर के चरणों का घोर अपमान नही है। 3 सवाल👉 देवी देवताओ की आरतियों में जैसे गणेश जी की आरती > अंधन को आंख देत कोढिन को काया, बाझन को पुत्र देत निर्धन को माया। इसमें बाझन को 'पुत्र देत' के स्थान पर संतान देत क्यू नही है। जैसे भक्ति गीतो मे भी, मां के द्वारे एक बालक पुकारे, बालक को विद्या दे गई मां और अगली कड़ी मे मां के द्वारे एक कन्या पुकारे कन्या को वर, घर दे गई मां।जैसे कन्या को विद्या की और ज्ञान की कोई जरूरत ही नही। विद्या तो सबको मिलनी चाहिए,इस पर तो सबका अधिकार है।क्या घर चलाने के लिए ज्ञान और विद्या की जरूरत नही है। 4 सवाल 👉 कई सालो तक वृहस्पति व्रत कथा पढी है।और भी कई व्रत कथाएं जैसे महालक्ष्मी व्रत कथा, सोमवार व्रत कथा, संतान सप्तमी कथा, सतनारायण कथा आदि। इन सब मे एक बात काॅमन है जो मुझे आज तक समझ मे नही आई कि इनमे आए हुए पात्रो द्वारा जो कथा कही जाती है वो कौन सी होती है और हम जो पढते है वो कौन सी होती है। क्योंकि हर कथा में फला फला रानी,राजा या अन्य पात्रों को फला फला पात्र बताता है कि आप विधि-विधान से फला फला कथा कहिए तो सब समस्याएं दूर हो जाएंगी और अगली ही लाईन में लिखा मिलता है कि रानी राजा या अन्य पात्र ने विधि-विधान पूर्वक वृहस्पति देव जी की (अन्य कथाएं भी) कथा कही जिसे सुनते सुनते ही सारे कष्ट दूर हो गए बस यहीं समझ नही आता कि इन पात्रों ने कौन सी कथा कही।क्योंकि व्रत कथाओ में कथाओ के पात्रो की कथा होती है न की उनके द्वारा कहलवाई गई उनके ईष्टदेव की कथा। ✍️रीता कुशवाहा ✍️