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लेखा-जोखा

Shubham Kumar 30 Mar 2023 आलेख हास्य-व्यंग लेखा-जोखा 31431 0 Hindi :: हिंदी

चित्रगुप्त की डायरी में, एक इंसान का जिक्र है, दरबार लगा हुआ है, सामने ही धर्मराज, सिंहासन पर बैठे हुए हैं, कुछ लोगों की कतार लगे हुए हैं, सब लोग  अपनी आंखें फाड़ फाड़ के, कुछ व्यक्ति को देख रहा है
 व्याख्या कुछ इस प्रकार है_ चित्रगुप्त तुम इस आदमी की_ कुंडली निकालो_  
इसने क्या क्या  किए हैं_ तभी चित्रगुप्त, डायरी निकालता है,, जी यह जो लोग हैं, यह धर्म के नाम पर, आपस में  लड़ाई झगड़ा कराता था_ और क्या-क्या करता था? जी यह लोग, लोगों को बहला-फुसलाकर, रैली निकालता था, सड़के जाम करती थी_ यह अपनी, जाति दुश्मनी निकालता था, और इसमें क्या-क्या किए हैं_ जिसने लगभग सैकड़ों गरीब परिवारों को, दारू पिलाकर_ तेल छिड़ककर आग लगा देते_ और यह इल्जाम सामने वाला विरोधी पक्ष पर देता था_ और इसने तो किसानों को भी लुटा है,, चित्रगुप्त_ मैं सोचता हूं, जनता कितनी, आलसी हो चुका है, उन्हें सच और झूठ, के विचार करने के लिए, उनके पास समय नहीं, आखिर यह लोग_ अपने मकसद में कामयाब कैसे हो जाते हैं_ जी महाराज_ चित्रगुप्त ने हाथ जोड़ते हुए_ उत्तर दिया_ पैसा हमारे गुनाहों पर  पर्दा डाल देते हैं_ गरीब का कोई_ सच सुनने का तैयारी नहीं,  यकीन करने को तैयार नहीं, और अमीर अगर झूठा भाषण भी दे तो पागल जनता यकीन करती है, इस धरती पर गरीबी, सब कुछ है, उसे ही लोग चोर बदमाश सब कुछ मानते हैं, जैसे आजकल पुलिस वाले उनके छोटी मोटी, गलतियों पर भी_ कानून का किताब पढ़ाते हैं
 और अमीर गुनाह करके भी खड़ा रहता है,  और सिपाही, उन्हें सेल्यूट करते हैं, उनके आदेश भी मानते हैं, ऐसा सिस्टम है
 उन्हें तो बस अपनी नौकरी बचाने की चिंता है, जो तानाशाह होते हैं, उनके ऊपर कोई नहीं बोल सकता_
 धर्म के नाम पर एक दूसरे को गला काटना धर्म है, क्या बताऊं आजकल यह नेता लोग,
 राज्य के राज्य ध्वस्त कर देते हैं, गरीबी बढ़ती जाती है
 आत्महत्या करने वाले लोगों की संख्या कम नहीं होती,, उन्होंने इन्हें समाज को आपस में बांट दिया है, उनके विज्ञान भी उनके नीति के अनुसार चलती है, वह लोग ज्ञान विज्ञान  का भी गलत प्रयोग कर रहे हैं,
 उनमें से जंगलों की कटाई_ और पशु पंछियों का व्यापार भी फल फूल रहा है_
 अन्याय करने  करने वाला के लिए, कानून पहले सबूत मांगती है, और वह लोग सबूत, हाथ की सफाई से मिटा देते हैं, सजा देने वाले का हाथ  बंधा है,  उसे कानून की डायरी  से आगे नहीं जाना.,, तभी धर्मराज कहता है_ इंसान से बड़ा कोई राक्षस नहीं,
 मैं शिकायत करूंगा, मैं भी आखिर कितना दंड धारा लगाऊंगा,  इनकी नस्लें मिटा दे तो अच्छा है,
 रावण तो भी इतना अत्याचारी नहीं था,, मैं इस कार्य से इस्तीफा, दे रहा हूं, और वह उदास होकर, चले जाते हैं,,
 तभी चित्रगुप्त_ डायरी में लिखता है, जो जिस पर अत्याचार करें, उसको सजा दे_ यही हमारी फैसला है, क्योंकि यमराज तो चले गए_ मैं भला क्या करूंगा_ यह दंड की धारा_ तुम ही लोगों के ऊपर_  लागू करता हूं, सब लोग मिलकर, उस नेता को, भरपुर पिटाई करते हैं_ और उन्हें  यातनाएं देती है_ वहां पर सब जनता मिलकर, उनकी इतनी कुटाई करते हैं_ वह इंसान अब जन्म लेने से भी पहले कई बार सोचेगा,
 उस मस्तान की हवा निकाल देते हैं, चित्रगुप्त भी अपनी डायरी छोड़कर, चले जाते हैं, यह सभा समाप्त हो जाती है,

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