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रामनवमीं पर हिंसा

virendra kumar dewangan 30 Mar 2023 आलेख देश-प्रेम Hinsha 87698 0 Hindi :: हिंदी

प्रभु श्रीराम के जन्मदिवस रामनवमीं पर उन्हीं के देश में, उनकी शोभायात्रा निकलने के दरमियान जिस तरह का उत्पात, उपद्रव, हिंसा व पत्थरबाजी किया गया, वह सर्वथा अशोभनीय और निंदनीय है। इसके बावजूद विपक्षी नेताओं ने तुष्टीकरण की नीति के तहत इस कायराना कृत्य के लिए इसके खिलाफ एक शब्द तक नहीं बोला। उल्टे कुछ आडे़-तिरछे बोल बोलनेवाले विपक्षी सियासतदानों ने यहां तक कह दिया कि ऐसा जुलूस एक वर्गविशेष के इलाके से क्यों निकालना चाहिए, जिससे कि साम्प्रदायिक सदभाव बिगड़े और हिंसा भड़के?
यही नहीं, मप्र के खरगोन में एक पूर्व सीएम ने मामले को सांप्रदायिक रंग देने के लिए एक ऐसी तस्वीर ट्वीट कर दिया, जो मप्र का न होकर बिहार का किसी जमाने का है। फिर जब सच्चाई सामने आई, तो उसे डिलिट भी कर दिया। इसपर संज्ञान लेते हुए मप्र के सीएम और वहां के नेताओं ने दिग्विजय सिंह के खिलाफ विभिन्न थानों में करीब आधा दर्जन एफआईआर दर्ज कर दिया है।
मप्र के खरगोन के एसपी के अनुुसार, वहां भड़की हिंसा में जहां तलवार, बम, गन, पिस्टल और पत्थर का बेजा इस्तेमाल किया, वहीं उपद्रवी बाहर से बुलाए गए थे, जो किसी सोची-समझी साजिश का हिस्सा है। इसी तरह की सीरियल हिंसा मप्र के बड़वानी, गुजरात के खंभात और आनंद, झारखंड, राजस्थान, प. बंगाल में भी हुई। इसपर केंद्रीयमंत्री गिरीराज सिंह ने कहा है कि यह हिंसा संयोग नहीं, एक प्रयोग है। जो बहुसंख्यक समाज को आतंकित करने के लिए किया गया है। ऐसा ही प्रयोग शाहिनबाग और दिल्ली दंगा में भी किया गया है, जिसमें पीएफआई जैसे बदनाम संगठन का हाथ होना साबित हुआ है।
जबकि भारत के संविधान या किसी सरकारी कानून में किसी वर्गविशेष के लिए कोई क्षेत्र कदापि आरक्षित नहीं किया गया है, जहां केवल और केवल एक ही धर्म के लोग रहें और वहां उन्हीं की तूती बोले तथा दूसरे धर्मावलंबी यदि उस क्षेत्रविशेष में चलने-फिरने व रहने लगे, तो उसपर हिंसक कार्यवाई कर उनके कार्यों को बाधित किया जाए। 
इसके उलट भारत के संविधान में तो यहां तक कहा गया है कि भारत का नागरिक किसी राज्य, किसी क्षेत्र में बेरोकटोक आ-जा सकता है, वहां रह सकता है और अपना कारोबार स्थापित कर सकता है। फिर चाहे वह जम्मू-कश्मीर हो, केरल हो, असम हो, प. बंगाल हो, पंजाब हो या फिर पूर्वोत्तर के राज्य या हो शाहीन बाग या हैदराबाद, जहां पर जनसांख्यिकी को जानबूझकर इस कदर बदला गया है कि बहुसंख्यक समाज, वहां अल्पसंख्यक हो गया है और अल्पसंख्यक, बहुसंख्यक बनकर धौंसधपट दिखाकर हिंसक हो रहा है। जम्मू-कश्मीर में तो अल्पसंख्यकों पर अभी तक ‘द कश्मीर फाइल्स’ की तरह हिंसा और मारकाट की आग में झोंकने का काम जारी है।
ऐसा कायराना कृत्य ‘द कश्मीर फाइल्स’ की पुनरावृत्ति नही ंतो और क्या है, जिसमें भारतीय क्षेत्र में भारत के नागरिक अपना शांतिपूर्ण जुलूस तक नहीं निकाल सकते। सवाल यह भी कि श्रीराम के देश में श्रीराम का जुलूस नहीं निकलेगा, तो क्या वह पाकिस्तान और अफगानिस्तान में निकलेगा, जहां पर वहां के हुक्मरानों की कुटिल नीति के चलते हिंदुओें की संख्या उंगलियों में गिनने के बराबर रह गई हैं।
यह बात भी नहीं कि रामनवमी की शोभायात्रा को बाधित करने का यह पहला प्रयास है। आजादी के पहले और बाद में भी इस तरह के सैकड़ों धृणित प्रयास मुस्लिम धर्मावलंबियों के द्वारा किया जाता रहा है, जिससे उत्पन्न दंगों में हजारों लोगों की जाने चली गई हैं।
इसी तरह की घटना उस जवाहरलाल नेहरू विवि में भी रामनवमीं के दिन घटी, जिसमें नानवेज बनाने और खाने के चक्कर में दो गुटों के छात्रों में आपसी सिरफुटौवल हुआ, जिसमें कइयों को गंभीर चोटें आई। यह वही जेएनयू है, जिसमें टुकड़े-टुकड़े गैंग के द्वारा गाहे-बगाहे पाकिस्तान जिंदाबाद और हिंदुस्तान की तबाही के नारे लगाए जाते हैं। 
माना कि खाने-पीने और कपड़े पहनने की आजादी सबको हासिल है, लेकिन एक धर्मनिरपेक्ष देश में यदि किसी अन्य धर्मावलंबियों की धार्मिक भावनाओं का आदर कर उस दिन मांस-मदिरा का त्याग कर दिया जाए, जिस दिन कोई धार्मिक दिवस हो, तो इससे किसको क्या नुकसान हो सकता है? लेकिन, कट्टरपंथी व अलगाववादी ताकतें यही नहीं चाहती और आपस में लड़वाकर अपना उल्लू सीधा करती रहती हैं।
इसमें सर्वाधिक दुःखद पहलु यह भी है कि मुस्लिमबहुल मुल्कों से, खासकर पाकिस्तान के रावलपिंडी, इस्लामाबाद और कराची व टर्की से ऐसे हजारों ट्वीट किए गए है, जिसमें भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनाम करने के लिए यह झूठ फैलाया जा रहा है कि भारत में मुसलमान समुदाय सुरक्षित नहीं है, उसपर बहुसंख्यक समाज यानी हिंदुओं के द्वारा हमले किए जा रहे हैं। जबकि वास्तविकता इसके ठीक उलट है। मुस्लिम समुदाय, हिंदू समुदाय के धार्मिक जुलूस पर आक्रमण किया है। इसपर क्या भारत के मुस्लिम नेताओं और धर्मगृरुओं को अपने देश के व विध्नसंतोषी मुल्कों के मुसलमानों को माकूल जवाब देने की जरूरत नहीं है?
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अनुरोध है कि लेखक के द्वारा वृहद पाकेट नावेल ‘पंचायत’ लिखा जा रहा है, जिसको गूगल क्रोम, प्ले स्टोर के माध्यम से writer.pocketnovel.com पर  ‘‘पंचायत, veerendra kumar dewangan से सर्च कर व पाकेट नावेल के चेप्टरों को प्रतिदिन पढ़कर उपन्यास का आनंद उठाया जा सकता है और लाईक, कमेंट व शेयर किया जा सकता है।

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