Trishika Srivastava 30 Mar 2023 शायरी समाजिक मेरे किरदार पे उसकी ऊँगली / ख़ुद्दारी गवां कर ता'अल्लुक निभाना / भूले से तेरी याद कभी आती नहीं / रंज-ओ-मुसीबत से हारे/ ज़िंदगी की सीड़ियाँ चढ़ते हुए 43206 0 Hindi :: हिंदी
(1). मेरे किरदार पे उसकी ऊगली न उठी होती गर उसकी भी कोई बहन या बेटी होती (2). ख़ुद्दारी गवां कर ता'अल्लुक निभाना मुनासिब नहीं ख़ुद को इतना गिराना (3) भूले से तेरी याद कभी आती नहीं तेरी कमी अब हम को रुलाती नहीं (4). रंज-ओ-मुसीबत से हारे तो मखलूक ने ठुकरा दिया करम किया ख़ुदा ने हमें अपना बना लिया (5). ज़िंदगी की सीढियाँ चढ़ते हुए बचपन पीछे छूट गया बरखा, तितली, खेल, खिलोने सब से नाता टूट गया 6 मिरे दिल की हर इक धड़कन तिरा ही नाम जप्ती है तिरी यादों की खुसबू से मिरी हर शै महकती है कसम खा कर के कहती हूँ तिरी फ़ुर्क़त में रोती हूँ तड़पती है कलम मेरी, मेरी बंसी सिसकती है - त्रिशिका श्रीवास्तव ‘धरा’ — त्रिशिका श्रीवास्तव ‘धरा’ कानपुर (उ.प्र.)