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Trishika Srivastava
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Trishika Srivastava
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विघ्नहर्ता आया है
शम्भू की संतान है, आदिशक्ति का जाया है जन-जन का विघ्न हरने, विघ्नहर्ता आया है - त्रिशिका श्रीवास्तव ‘धरा’
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प्रेम की तृषा बुझा ना सके
बता ना सके, जता ना सके हृदय की पीर मिटा ना सके भीतर-भीतर सिसक रही नयनो से नीर बहा ना सके युगों-युगों से प्रेम को तरसे प्रेम की तृषा बुझा
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चाँद को पहलू में बिठा लेती हूँ
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अपनी ही निगाहों में गुनहगार हो गई हूँ
अपनी ही निगाहों में गुनहगार हो गई हूँ हर सजा की मैं हक़दार हो गई हूँ तमाम उम्र नहीं देखूंगी ख़ुद को आईने में ऐ ख़ुदा! मैं इतनी दागदार हो गई
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नित अधरों से बंसी को
नित अधरों से बंसी को चूम लिया करती हूँ मैं सबसे अधिक प्रेम इसी से किया करती हूँ - त्रिशिका श्रीवास्तव ‘धरा’
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इतनी सी गुज़ारिश है
इतनी सी गुज़ारिश है किसी बेज़ुबान को मत सताओ सुबह शाम बस इक रोटी इन लावारिस कुत्तों को खिलाओ - त्रिशिका श्रीवास्तव ‘धरा’
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पलकें झुकने का मतलब ये नहीं
पलकें झुकने का मतलब ये नहीं कि गुनाहगार हूँ मैं संस्कारों की बेड़ियों में गिरफ़्तार हूँ मैं - त्रिशिका श्रीवास्तव ‘धरा’
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क्रोध में स्वाहा हो जाता है
क्रोध में स्वाहा हो जाता है व्यक्ति का विवेक फिर मस्तिष्क में आते हैं अपराध के काम अनेक - त्रिशिका श्रीवास्तव ‘धरा’, कानपुर
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क्रोध, वासना, अहंकार की अग्नि को बुझाओ
क्रोध, वासना, अहंकार की अग्नि को बुझाओ राम हो जिस के भीतर वहीँ रावन को जलाओ - त्रिशिका श्रीवास्तव 'धरा' कानपुर(उ.प्र.)
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दुश्मनों का निशाना
दुश्मनों का निशाना हर बार चूक जाता है 'शम्भू' ढाल बन के मेरे आगे आ जाता है - त्रिशिका श्रीवास्तव धरा
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