Chanchal chauhan 30 Mar 2023 आलेख समाजिक प्रधानमंत्री जी से निवेदन, विनती 15762 1 5 Hindi :: हिंदी
हाये गरीबों को तो यह महंगाई मार गई, पैसों की कमी मार गई, वह भी जमाना था 10 का रिचार्ज होता था, अब सीधी 200 की फ्लेक्सी हो गई, रिचार्ज वाली कंपनियों की बड़ी आमदनी हो गई, क्या गरीब फोन चलाना ही छोड़ दे, अब उनकी बस की रिचार्ज करना ना बात हो गई, सबका मन होता है फोन चलाने का, नेट तकनीकी से आगे बढ़ने का, क्यों हर चीज में गरीबी पीछे छूट गई, पढ़ाई में देखो तो पैसा ही पैसा, बिन पैसे की पढ़ाई बेकार, यह गरीबी आगे नहीं बढ़ने देती, सादी में देखो तो पैसा पैसा, गरीब गठरी बांध के बैठ जाओ अपने गुणों संस्कारों की, कुछ नहीं मिलता गरीबी की लाचारी में, सब सपने, अरमां दबा देती है गरीबी, एक बेबस नारी ससुराल में फोन से ही वार्तालाप करके अपना हाल-चाल बताती हैं, अगर महंगाई के कारण वो रिचार्ज ना कर पाए, ससुराल में इसकी दुर्दशा हो जाए, अपना हाल ना बता पाए, तो वो खुट ही जाएगी, एक दुर्घटना का पात्र बन जाएगी, यह जिम्मेदारी इस पर लागू होगी, लड़कियों को महिलाओं को सरकार कुछ ऐसा तो काम दीजिए, जो घर बैठे बैठे ही बे कमाए, फिर महंगाई बढ़ाएं, पैसे तो उनके पास नहीं होते, हर कोई बाहर पैसे कमाने नहीं भेजते, पहले से ही दहेज की आग लगा रखी थी, अब रिचार्ज का विस्फोट लगा डाला, 100 का भी रिचार्ज कर देते तो कोई क्या बात थी, थोड़ा नेट थोड़ी कॉलिंग कम कर देते, कम कम नहीं गुजारा कर लेते, इतने पैसे कहां से लाए, थोड़ी सी गरीबों पर भी दया कर दीजिए, प्रधानमंत्री जी मोदी जी गरीबों के लिए ₹100 का रिचार्ज कर दीजिए, हर किसी के घर में कमाने वाले नहीं होते, हर बच्चों की मां बाप नहीं होते, क्या उनके आगे बढ़ने के कोई सपने नहीं होते, बे मोबाइल का रिचार्ज कर आएंगे या फिर पढ़ाई में पैसे लगाएंगे, साल भर का कितना खर्चा लगता है, ऐसे तो देश के गरीब बच्चे पीछे ही रह जाएंगे, हम भी बैठे हैं बेकार कुछ जॉब तो हमें भी दीजिए, प्राइमरी में पढ़कर घर में खाना बनाते हैं, जैसे हमारा भविष्य हुआ है बेकार, आगे किसी और का ना हो पाए, रखना गरीबों का ध्यान। हम भी तो इस देश के वासी हैं, इस मिट्टी में उपजे, सपना हमारा भी है कुछ करने का, इस देश का मान बढ़ाना, अपनी भारत माता का सर गर्व से ऊंचा उठाने का। लेखिका चंचल चौहान
7 months ago
Mera sapna tha apne bicharo ko logo tak phunchana unko jiwn ki sikh ,prerna dena unmai insaniyat jag...