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व्यथित मन

Rani Devi 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक सांची धूप 16078 0 Hindi :: हिंदी

                  व्यथित मन
मेरा यह व्यथित मन
ढूँढ रहा न जाने किसको
कभी लगता है पिंजरे में बंद
उस पंछी की तरह
न जाने खोए हुए अनजाने सपनों
 की तस्वीरें क्यों ढूँढ रहा  ? 

विचरता गया संसार की चकाचोंध में
स्वार्थी और आदर्शहीन दुनिया में
उलझता गया आखिरी छोर तक
न जाने आँधियारे की उदास संवेदना की
लालिमा को अब क्यों ढूँढ रहा  ? 

डूबता ही गया प्रेम के गहरे समुद्र में
न ही पाया किनारा, न थल की गहराई
मुझे तो इस व्याकुल मन की व्यथा न समझ आई
कभी ढूंढता बहारों को, कभी आँधियारों को
कभी उदय होता चमकीली किरणों संग
फिर सांझ की लालिमा से निराश होकर
 ढूँढ रहा भविष्य के उस तम अंतराल को   
        मेरा यह व्यथित मन   ! 

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