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Abhijit Kumar Singh

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धनुष था मेरे बाणों का दर्पण चमत्कारी वैभव भुजाओं में निषाद पुत्र का अंश सवेरा चला था स्वर्ण बहारों में नादान अनजान बालक था मै वह� read more >>
गुज़रते हरेक ज़माने से गुजरा हूँ मैं कभी हौसलों में ज़ोर था यादें आती हैं मीठी मीठी सी वो वक़्त नहीं बिखरता दौर था नफ़रतों में पलते अज़ीज़ read more >>
वो उधड़े धागे उन रिश्तों के है जहाँ गांठो की गुंजाइश कम है ज़िन्दगी के दरिये का गोताखोर हु यहाँ बचे रहने की फरमाइश कम है हर तरफ सिर्� read more >>
बिछा था जब लहू माटी में वह भी दिन याद हैं मासूमों की चीखों से गूंजा आज का जलीया बाग़ हैं खोया था जो बंटवारे में हिन्दू न मुसलमान है� read more >>
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