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Dipak Kumar

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@ dipak-kumar
, UP

Hindi premi aur rachnakar.

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ज़िन्दगी के फलसफ़े में अब न उलझाना मुझे ख़ुद समझ लेना तो उसके बाद समझाना मुझे मेरी दिन भर की उदासी को समझ लेता है वो शाम होते ही बुला लेता read more >>
आप कहने को बहुत ज़्यादा बड़े हैं असलियत यह है मचानों पर खड़े हैं ख़ास कंधा, दास चंदा, रास धंधा, एक अंधे दौर के सिर पर चढ़े हैं कीजिए झट कीजिए read more >>
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