Dipak Kumar 15 Jun 2023 ग़ज़ल समाजिक #google #hindi sahity #sahity live #social 6143 0 Hindi :: हिंदी
हँसने का हँसाने का हुनर ढूंढ रहे हैं हम लोग दुआओं में असर ढूंढ रहे हैं अब कोई हमें ठीक-ठिकाने तो लगाए घर में हैं मगर अपना ही घर ढूंढ रहे हैं जब पाँव सलामत थे तो रस्ते में पड़े थे अब पाँव नहीं हैं तो सफ़र ढूंढ रहे हैं क्या जाने किसी रात के सीने में छिपी है सूरज की तरह हम भी सहर ढूंढ रहे हैं हालात बिगड़ने की नई मंज़िलें देखो सुकरात के हिस्से का ज़हर ढूंढ रहे हैं कुछ लोग अभी तक भी अंधेरे में खड़े हैं कुछ चाय के प्यालों में गदर ढूंढ रहे हैं| ~ Dipak Kumar