संदीप कुमार सिंह 26 Oct 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 15202 0 Hindi :: हिंदी
शेर सा दहाड़ यहां बनकर हम सब शेर, वीरों की टोली कभी रुकती नहीं। निकल पड़ी जो मंजिल की और, सारी विपदा भी बौना पड़ जाए। चमन जो अपना कुछ फीका हो गया, फिर से इनको हरा_भरा है करना। फिजा में भी जोशीला भाव है भरना, जीवन भर ही खुद के लिए है लड़ना। अंधेरों की विसात क्या जो हमें रोक दे, हम वीरों की टोली निरंतर बढ़ते ही चलते। उत्साहों का धूल उड़ाते हम चलें, गले से गले मिलते हुए हम चलें। लबों पे तराने मस्ती का गाते हम चलें, आसमानों सा इरादा लिए हम चलें। वसुंधरा जो न्यारी है इनको नमन करते हम चलें, सूर्य की किरण बन सबको सुख देते हम चलें। हिमालय के समान अपना है मंसूबा, जिंदगी अपनी पहली है महबूबा। अधिकार खो कर चुप रहना है दुष्कर्म, न्याय के लिए लड़ना ही है धर्म। दुश्मन गर हद पार करने की कोशिश करे, तो उसका समूल नष्ट करने में हम परहेज न करें। भारत देश की अपनी है विशेष पहचान, जो दुनियाँ को हमेशा अगाध प्रेम ही है दिया। ये माना की अनेकता का है यहां रंग, फिर भी कोई हमारी शांति को नहीं कर सकता है भंग। एकता भी हमारी ही है परम्परा, साक्षी है जिसकी संपूर्ण विश्व की वसुंधरा। चाँद पर भी हमने अपना लगा दिया है घेरा, ताकत का हमने बना लिया लाखों जखीरा। अव्वल दर्जे का जीने का है तरीका, और कहीं भी पेश आने का है बेहतरीन सलीका। फौलादी है हमारा वतन, फौलाद हैं यहां की सारी जनता। अगर जिस दिन मानवता को गया भूल, सारे बेईमान देशों को चटा देंगे हम धूल। वेदों की भाषा को हम हैं जानते, ईमान_धर्म को हम सब हैं खूब मानते। निर्मल हृदय से हम सबका ही करते हैं स्वागत, गद्दारों को कभी भी कर सकते हैं गारत। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....