संदीप कुमार सिंह 08 May 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 4419 0 Hindi :: हिंदी
जलने लगे अलाव अब,ठंढ़ी चारों ओर। थड़थड़ हैं तन कांपते, बंधे नहीं है कौर।। जलने लगे अलाव अब,अमृत तुल्य है आग। बिना आग के जल नहीं,गाते सब यह राग।। जलने लगे अलाव अब, शीत लहर है जोर। ओस भरा परिवेश है, डूब गया है भोर।। जलने लगे अलाव अब, होते नहीं प्रभात। रहे आग के पास सब, लम्बी होती रात।। जलने लगे अलाव अब,इससे बचती जान। त्राहि त्राहि सब लोग हैं,करें दया भगवान।। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍🏼 जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा) बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....