संदीप कुमार सिंह 05 Jul 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 4868 0 Hindi :: हिंदी
(दोहा छंद) टूटे बांध विकास के,हुए नागरिक मूक। राम भरोसे चल रहा,दिखे नहीं निज चूक।। टूटे बांध विकास के,छाए बादल भ्रष्ट। जनता में अति छोभ है,मिलते नहीं सुद्रष्ट।। टूटे बांध विकास के,चौपट हुआ विकास। मनमानी है हर जगह,लालच सबके पास।। टूटे बांध विकास के,घोर निराशा आज। अफरातफरी हर जगह,रूक गया सब काज।। टूटे बांध विकास के,आई है मत बद बाढ़। नहीं हया अब लोग में,शायद अब हो काढ़।। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....