Shubham Kumar 30 Mar 2023 आलेख समाजिक तीसरी अदालत क्या है 21806 0 Hindi :: हिंदी
तीसरी अदालत क्या है हां मेरा खुद का एक अदालत है। जिसमें मैं खुद एक गुनाहगार होता हूं। और मेरी भावनाएं वकील होती है। और मेरी अंतरात्मा एक जज होता है। मैं खुद को प्रतिदिन अपनी अदालत में खड़ा करता हूं। यकीन मानो जिस दिन मैंने खुद को अपनी अदालत में खड़ा ना किया है। उस दिन मेरा सबसे बड़ा घाटा हुआ है। उस दिन मेरे अंदर अहंकार भी बढ़ गया है। आप लोग सोच रहे होंगे यह कैसी बातें कर रहा है। मैं वादा करता हूं आज से पहले आप लोगों ने कभी ऐसा। ना ही किसी के द्वारा सुना होगा नहीं किया होगा। लेकिन यह क्रिया सभी के साथ होती है। मैं जो भी गुनाह करता हूं। जैसे मेरे ऊपर खुद ही एक केस चलता है। एक वकील मेरे खिलाफ चलता है।। जैसे कि उदाहरण के तौर पर। मैंने गुस्से में अपने पिता को अपशब्द बोल दिया था। बाद में जानते हो मेरे साथ क्या हुआ? मैं खुद के अदालत में खड़ा था शर्मिंदा। एक वकील मेरे खिलाफ बोल रहा था। वह मुझे काफी बुरा भला कह रहा था। और मैं किसी गुनहगार की तरह सर को नीचे किए हुए खड़ा था। उसने ऐसा बोला। देख इस अहंकारी मनुष्य को। देख इस पापी मनुष्य को। अरे तू क्या जानता है पिता के कष्टों को। तू तो उसका बेटा है ना। वह तुझे बुरा भला नहीं कह सकता क्या? आखिर तुमने ऐसा कौन सा काम किया है? जिससे उनको गर्व हो। तू एक बिगड़ा हुआ बेटा है। जो कोई पिता ऐसा नहीं चाहता। तू पहले खुद को बदल ले। तू कभी नहीं जान सकता है कि तुम्हारा पिता। तुम्हें कितने कष्टों से पाला है। और तुम्हारी जुबान तो देखो कितनी चल रही है। गधा नालायक कहीं का। बेवकूफ। घटिया लोग। क्या बताऊं कितनी गाली हमें मिलती है? और ऐसा नहीं है कि। कि हमें सिर्फ गालियां ही मिलती है। इधर कोई व्यक्ति खड़ा है मेरे पास। जो आगे पीछे सब जानता है। जो सब कुछ महसूस कर सकता है। वह पिता की अच्छाइयों को महसूस कर लेता है। और मुझ नालायक को समझाता है। और वह कहता है देख तुम्हारा पिता ऐसा है। कोई भी कार्य हो वह उसे महसूस कर लेता है। फिर एक जज मेरे ऊपर। अपनी धारा के अनुसार मुझे सजा देता है। फिर मेरी आंख से आंसू बहते हैं। दूसरे पल ही में बदल जाता हूं। मेरा स्वभाव भी बदल जाता है। मेरा अहंकार मिट जाता है। मैं जानता हूं जो व्यक्ति ऐसा करता है। उसे किसी और अदालत में खड़ा होने की जरूरत नहीं। वह बिना मार खाए हैं समझ जाता है। जो व्यक्ति ऐसा नहीं करता है। मैं सच सच कहता हूं। उसके लिए इस अदालत और उस अदालत भी कम है। उसकी सजा बहुत ज्यादा होने वाली है। इंसान के पास तीन अदालत होता है। पहला जिसका मैंने विवरण दिया है। और दूसरा इस संसार के कानून और नियम। तीसरा जिसने संसार को बनाया। उनका भी तो एक अदालत है ना। मेरी रचना समाप्त हुई। आप लोग मेरी और अन्य रचनाएं को पढ़ें। मुझे अपार प्रसन्नता होगी। मुझे आप लोगों की समीक्षा बहुत अच्छी लगती है। मैं आपका प्रिय लेखक शुभम कुमार।
Mujhe likhna Achcha lagta hai, Har Sahitya live per Ham Kuchh Rachna, prakashit kar rahe hain, pah...