gajala praveen 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक समाजिक सुधार 94611 2 5 Hindi :: हिंदी
किन्नर हो तुम दूर रहो ये शब्द कितना कडवा है.. ... दुःख से भरे इस जीवन में अब कौन अपना है... घर से तिरस्कृत हुऐ दुनिया से गिला क्या.. हर जगाह हीन दृष्टि से देखे... इतना अपमान ही क्या.. जिसने तुझे पैदा किया उसने मुझे भी पैदा किया ... ...... यौन विकलांगता के कारण तुमने मुझे इतना बूरा कहा........... धिक्कार है समाज तुम्हे तुमने मुझे इतना दूःख दिया.. .... किन्नरों की अभिलाषा को न समझा उन्हें इतना बूरा कहा....... आशिर्वाद लेने के लिए मना लिया बाजार में देखा तो खिजा दिया हे.......... समाज ये तुने क्या किया पहले ही दूःख से घिरी हूँ मैं तूने उसे और बढा दिया... हे.......... समाज ये तुने क्या किया.... अपने मनोरंजन के लिए तूने मेरा अपमान किया..... मेरा भी अधिकार हो मैं भी यही चहती हूँ,.... मेरा भी सम्मान हो मैं भी यही चहाती हूँ...... मुझे भी उजायाले की राह दिखे मैं भी यही चहाती हूँ....... मेरी भी खुद की पहचान हो मैं भी यही चहाती हूँ......